कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
दो
रोटी खिला दी, काम निमटा, पर काम कहाँ निमटा, मेरी रज़ाई की मुलायम बुक्कल में कहीं से यह एक प्रश्न जो उभर आया है : क्योंजी, ममता जो मानव की सहज वृत्ति है, उसमें यह उपयोगिता का भेद कहाँ से आ घुसा? यह ममता की शुद्धता का संहारक है या उसकी दिशा का सूचक?
प्रश्न अपने में साफ़ है, पर मैं उसे ज़रा और भीतर तक समझना चाहता हूँ। मेरे पास धन है, मैं उसे कुकर्मों में उड़ा रहा हूँ। मेरे पास धन है और मैं उसे सुकर्मों में लगा रहा हूँ। मेरे पास धन है, पर न मैं उसे खाता हूँ, न ख़र्चता हूँ, बस दबाये बैठा हूँ।
हमारे भीतर एक बोध-वृत्ति है जो कहती है कि पहली और तीसरी बात बुरी है और दूसरी अच्छी है। मन की बात है, बिना किसी बहस-दलील के मन में समा जाती है, हाँ जी, दूसरी ही बात अच्छी है, फिर भी यह पूछने की गुंजाइश तो है ही कि क्यों अच्छी है?
उत्तर साफ़ है कि उपयोग के आधार पर और यह उत्तर साफ़ है तो यह निष्कर्ष भी साफ़ है कि उपयोगिता ही जीवन का एक मानदण्ड है, जो हमारी प्रवृत्तियों का मूल्य आँकती है।
मैंने सोचा, तब मैंने ठीक किया कि रोटी न चिड़ियों को दी, न भैंसे को खिलायी, बछिया को भेंट कर दी। अपने निर्णय की प्रशंसा से मेरा आपा आप ही आप भर गया और मैं सुख से लेट गया।
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में