कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
तीन
लेटते ही मुझे याद आ गयी, अपने पुराने पड़ोसी रामदयाल की। उनके तीन पुत्र थे। बड़ा था भंगड़-शाम को ऐसी चकाचक छानता था कि गुच; हाथी कटड़ा दिखाई दे तो भैंस भौंरा, पर लुत्फ़ यह कि नशे की झोंक में भी उसे यह ध्यान रहता था कि कैसे वह अपने पिता के पैसे चुराये और नशे की खुमारी पर रबड़ी की तह दे सके !
दूसरा लड़का गूंगा-कभी के अभिशापों को भोगने ही जैसे जगत् में आया हो-न पढ़ा, न लिखा, कोरा लट्ठ !
तीसरा लड़का कचहरी में नौकर, तनख्वाह अच्छी और उससे भी अच्छी ऊपर की आमदनी।
रामदयाल रात-दिन अपने छोटे लड़के के गीत गाता और उसकी खूब ख़ातिरें करता। बड़ा लड़का अपनी बदमाशियों से मतलब भर को उचक लेता, पर वह गूंगा लड़का कमाने के लायक नहीं, उचकने में असमर्थ-सब तरह दूसरों की दया पर निर्भर। दूसरे भाइयों के फटे कपड़ों और टूटे जूतों पर उसे जीना पड़ता।
एक दिन वह कमाऊ पूत भोजन पर बैठा तो उसमें मक्खी निकल आयी। वह बहुत नाराज़ हुआ और जूठा खाना छोड़कर उठ गया। बाप ने सबको गालियाँ दीं, उसे मनाकर लाया और नयी थाली परोसकर भोजन कराया।
गूंगे से कहा गया कि भाई की जूठी थाली में वही मक्खी वाला खाना वह खा ले, पर वह तैयार न हुआ। बाप को गुस्सा आ गया और गूंगे पर तगड़ी मार पड़ी। पेट में भूख की कचोट, तन पर मार की चसक और कलेजे में अपमान का नासूर, बेचारा दिन-भर बहुत दुःखी रहा।
मेरे पिता ने शाम को उसे बुलाकर चाय पिलायी, खाना खिलाया और पुचकारा, दुलारा। बाहर से मैं लौटा तो सारा क़िस्सा उन्होंने मुझे सुनाया, और बोले, “कैसा राक्षस बाप है रामदयाल।"
रामदयाल की याद आयी तो उस याद में से झाँक पड़ा यह प्रश्न, उपयोगिता के आधार पर ममता का बँटवारा करने वाला रामदयाल राक्षस है तो फिर तू ही कहाँ का देवता है?
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में