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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

तीन


दिल्ली की यात्रा में एक दृश्य सदा ज्यों-का-त्यों मुझे देखना पड़ता है। मुज़फ़्फ़रनगर से कुछ लोग रेल के डिब्बे में आ जाते हैं और मेरठ तक चलते हैं। डिब्बे में ये दस-पाँच आदमी क्या आते हैं, नयी मण्डी ही घुस आती है-उड़द का भाव, गेहूँ का भाव, गुड़ का भाव, मांझे का भाव और सरसों का भाव तो तुलता ही है, बीजकों के सौदे भी छनते हैं और आढ़तियों की चालाकियाँ भी खराद पर आ जाती हैं। ये लोग इतने ज़ोर-ज़ोर से बोलते हैं, कई-कई एक साथ बोलते हैं कि और कुछ सोचना असम्भव हो जाता है। असम्भव क्या, बस इतनी देर दिमाग को मण्डी की खत्तियों में बन्द रखना पड़ता है।

उन बेचारों को देखकर, मन दया से द्रवित हो जाता है और मैं सोचने लगता हूँ, इनके लिए दुनिया में खत्तियाँ हैं, बीजक हैं, भाव हैं, और बस और कुछ नहीं है, कुछ भी तो नहीं है-उनमें से कोई मेरा दैनिक माँगकर देखता भी है तो बस मण्डियों के भावों का पन्ना ही पढ़ता है।

और मुझे याद आ जाते हैं अपने नगर के वे दूकानदार, जो मंगल की छुट्टी के दिन भी अपनी तालाबन्द दूकान के बाहरी तख्ते पर ही पसरे अँभाइयाँ तोड़ते रहते हैं और उन्हीं के शब्दों में जिनको शिकायत है-“बाबूजी, यह अच्छी मनहूस छुट्टी है कि दिन काटे नहीं कटता !''

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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