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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

तीन


तो आज के आदमी की दिलचस्पी आदमी में नहीं है, यह निष्कर्ष मेरे मन में आया कि वहीं उभर खड़ा हुआ यह प्रश्न-तो क्या आज के आदमी की दिलचस्पी आदमी में नहीं है?

चाँदनी और चिन्तन एक साथ मुझे अभिभूत कर रहे हैं। चाँदनी में सौन्दर्य है जो आँखों को पलक झपकने से रोकता है तो चिन्तन में स्मृतियाँ हैं, जो विचारों के वाहन पर चढ़ी चली आ रही हैं।

एक्सप्रेस के लिए अभी दिल्ली दूर है, पर मैं दिल्ली पहुंच गया है। एक मित्र ने वहाँ अपने व्यापार का कार्यालय बनाया और काम करने लगे। बनती के सभी रिश्तेदार, जाने कितनी गलियों में घुमाकर उनके जीवन के चौराहे से अपने वंश की रिश्तेदारी जोड़ता एक तरुण आया और उनके कार्यालय में काम पा गया।

एक दिन शाम को एक स्त्री कहीं बाहर से आयी और मेरे मित्र के कमरे में ठहरी। उस तरुण ने जानना चाहा कि यह कौन है, पर जान न पाया।

रात में उस मित्र के कमरे के पिछले हिस्से में सीढ़ी लगाकर चम्पालाल झाँकने लगा कि अपने प्रश्न का समाधान पा ले, पर सीढ़ी धोखा दे, रपट पड़ी तो तरुणजी छत से पत्थरों पर धड़ाम से गिरे और छिते सो छिते ही, दो हड्डियाँ भी ककड़ी-सी मड़क गयीं। यह स्त्री मेरे मित्र की पत्नी थी, जो जोड़े हुए रिश्ते से उस तरुण की बुआजी हुई।

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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