लोगों की राय

कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू

बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

335 पाठक हैं

सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।


“और क्यों जी, लगाने वाला न लगाए नाव को पार और मँझधार में कर दे, डुबक-डुबक डुम-डुम, तो क्या हो? बस करो बेटा पहले पाताल लोक की सैर और फिर पानी पर तैरते नज़र आओ स्लीपर की तरह ! यह वचन भी खूब रहा और उसका प्रवचन भी खूब रहा। मतलब यह कि चढ़ जा बेटा शूली पर राम भली करेगा। अरे भाई, राम क्या भली करेगा, तेरे प्राण-पखेरू फुर्र हो जाएँगे। भूख अपने पेट में और रोटी दूसरे के हाथ, उसने समय पर टुकड़ा दिया, दिया, न दिया, न दिया। भला, यह भी कोई बात हुई !"

दिया किस तरह नहीं? दिया और इस तरह दिया कि लेनेवाले का सिर ऊँचा रहा। हमारे देश के एक-दो नहीं, अनेक भगत गा गये हैं कि-

“होंगे दयाल तो देंगे बुलाय के !
लेने कौन जाएगा, देंगे घर आय के !!"

घर आकर देना, कोई कल्पना नहीं है, मेरे भाई, खयाली पुलाव भी यह नहीं है। हाँ, यों कह सकते हो कि यह जीवन का एक चमत्कार है। फिर यह चमत्कार कोई सन्तों की ही बपौती नहीं, मेरे-जैसे साधारण मनुष्य ने भी अपने जीवन में यह चमत्कार देखे हैं। युगपुरुष गाँधीजी ने कहा था कि जहाँ सत्य होता है, वहाँ चमत्कार भी होते हैं।

अब कहो, तुलसीदास का वचन जीवन-विज्ञान का अमृत है या नहीं? यह अमृत मनुष्य को भिखारी होने से रोक देता है और उसे अपनी आँखों में हीन नहीं होने देता। यही नहीं, उसमें एक ऐसी बेफ़िक्री पैदा कर देता है कि फ़िक्र, प्यास, तृष्णा, ईर्ष्या, मानसिक हीनता और इसी तरह के दूसरे दोष उसके पास नहीं फटक पाते। उसमें स्वाभिमान इस सीमा तक उत्पन्न हो जाता है कि माँगते ही मिल जाने का अखण्ड विश्वास होने पर भी वह किसी से नहीं माँगता और साफ़ कह देता है :

'यह गवारा न किया,
दिल ने कि माँगूं तो मिले।
वरना साक़ी को,
पिलाने में कुछ इनकार न था।'

हाँ, बिना माँगे ही उसकी ज़रूरत पूरी हो जाती है और जीवन में कभी ऐसा अवसर भी आता है कि वह प्यासा ही रह जाए, उसे कुछ न मिले, तब भी उसे दुःख नहीं होता कि मुझे यह मनचाही चीज़ क्यों न मिली। तब भी वह तुलसीदास की बात मानकर अपनी खाट पर खुर्राटें बैंचता रहता है; क्योंकि उसका विश्वास उससे कहता है कि तेरी माँग में-तेरी चाह में ही कहीं कुछ भूल है और वह अपने राम से कह उठता है :

"तेरे करम में कभी कुछ नहीं, करीम है तू,
कुसूर मेरा है, झूठा उमीदवार हूँ मैं !'

इसका एक नमूना मैं अपनी आँखों देख चुका हूँ और तब से ‘रहो खाट पर सोय' की फिलासफ़ी में मेरा तो अखण्ड विश्वास हो गया है।

मेरे एक मित्र अपने लिए एक मकान चाहते थे। उन्हें सचमुच मकान की ज़रूरत थी और इसे सभी मानते थे। बहुत दिनों के बाद एक मकान उनके नाम एलॉट हो गया, पर तभी कुछ लोगों ने उसमें अडंगा लगा दिया। ये लोग इतने धर्त थे कि वह सरल मित्र उसमें उलझ गया और मकान न पा सका। मित्र को मकान तो मिला ही नहीं, उनकी बेइज़्ज़ती भी हुई, क्योंकि मकान के मामले को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया गया था, पर वे अब भी शान्त थे। उन्हें देखकर आश्चर्य होता था। उन्होंने कहा, मकान मुझे मिलना चाहिए था, यह ठीक है और उसका न मिलना अन्याय है, यह भी ठीक है, पर भगवान् जाने इसी में मेरा हित हो !

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai