आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
लोग अपनी समस्याओं को यथासाध्य सुलझाने का भी यत्न करते हैं। अर्थ संकट आ जाता है, तो सब कुछ भूलकर उसके सुलझाने में लग जाते हैं। शारीरिक समस्या खड़ी हो जाती है तो उसका उपाय करने लगते हैं और जब कोई मानसिक उलझन में पड़ जाते हैं तो उसका उपचार सोचते हैं। पर होता यह है कि एक समस्या सुलझाने में लगे रहने से संसार की दूसरी समस्याओं को अवसर मिल जाता है और वे अपना प्रभाव बढ़ा लेती हैं। जैसे शारीरिक समस्या में संलग्न होने पर आर्थिक संकट उठ खड़ा होता है और अर्थ संकट की ओर ध्यान देने पर मानसिक उद्विग्नता आ घेरती है।
उस प्रकार एक के बाद एक, कोई-न-कोई समस्या आती रहती है और मनुष्य का जीवन उनको सुलझाने में ही तबाह हो जाता है, वास्तविक लक्ष्य के लिए कुछ नहीं कर पाता। यदि कोई ऐसा उपाय निकल आये, जिसको प्रयोग में लाने पर सारी समस्याएँ एक साथ शमन होती रहें तभी कुछ काम बन सकता है। नहीं तो जीवन इसी प्रकार के ऊहापोह में व्यतीत हो सकता है। सारी समस्याओं का एक सामान्य हल है-अध्यात्मवाद। यदि शारीरिक, मानसिक और आर्थिक सभी क्षेत्रों में अध्यात्मवाद का समावेश कर लिया जाये और अपना दृष्टिकोण सर्वथा आध्यात्मिक बना लिया जाये, तो सारी समस्याओं का समाधान साथ-साथ होता चले और आत्मिक प्रगति के लिए अवसर एवं अवकाश भी मिलता रहे। विषयों में सर्वथा भौतिक दृष्टिकोण रखने से ही सारी समस्याओं का सूत्रपात होता है। दृष्टिकोण में वांछित परिवर्तन लाते ही सब काम बनने लगेंगे।
अध्यात्मवाद का व्यावहारिक स्वरूप है—संतुलन, व्यवस्था एवं औचित्य। शारीरिक समस्या तब पैदा होती है, जब शरीर को भोगसाधन समझकर बरता जाता है। आहार-विहार और रहन-सहन को विलासपरक बना लिया जाता है। इसी अनौचित्य एवं अनियमितता से रोग उत्पन्न होने लगते हैं और स्वास्थ्य समाप्त हो जाता है। सर्दी, जुकाम, सिर दर्द, रक्तचाप, हृदय शूल, अजीर्ण और यहाँ तक कि कभी-कभी असाध्य राज-रोगों का शिकार बनना पड़ता है। ऐसी दशा में एक यही शारीरिक समस्या ही मनुष्य की सारी जिंदगी अपने अर्थ लगा लेती है, तब वह कैसे परमात्मा का सामीप्य प्राप्त करने के लिए साधना कर सकता है और कब आत्मा का चिंतन कर सकता है? रोगी रहने वाला मनुष्य किसी लौकिक और पारलौकिक प्रगति के लिए एक प्रकार से असमर्थ ही बन जाता है।
यह शारीरिक समस्या बड़ी आसानी से हल हो सकती है, यदि इसके विषय में दृष्टिकोण को आध्यात्मिक बना लिया जाए।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न