आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
भगवान् शिव का वाहन वृषभ है। वृषभ सौम्यता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है। तात्पर्य यह कि शिव का साहचर्य उन्हें मिलता है, जो स्वभाव से सरल और सौम्य होते हैं, जिनमें छल-छिद्र आदि विकार नहीं होते। साथ ही जिनमें आलस्य न होकर निरंतर काम करने की दृढ़ता होती है। श्मशान में उनका निवास है अर्थात् वे मृत्यु को कभी भूलते नहीं। भगवान् की शक्ति और नियमों को मृत्यु की तरह अकाट्य मानकर चलने में मनुष्य की आध्यात्मिक वृत्तियाँ जाग्रत् रहती हैं, जिससे वह लौकिक कर्तव्यों का पालन करते हुए भी अपने जीवन-लक्ष्य की ओर निष्काम भाव से चलता रह सकता है। मृत्यु को लोग भूले रहते हैं, इसलिए बुरे कर्म करते हैं। इस महातत्त्व की उपासना का अर्थ अपने आप को बुरे कर्मों से बचाये रखने के लिए प्रकाश बनाए रखना होता है। इस तरह की जीवन-व्यवस्था व्यक्ति को असाधारण बनाती है। वह शक्ति शिव में पाई जाती है, शिव के उपासकों में भी वह वृत्तियाँ घुली हुई होनी चाहिए।
यह प्रसंग भगवान शिव की आध्यात्मिक शक्तियों पर प्रकाश डालते हैं। इनके साथ कथानक और घटनायें भी जुड़ी हुई हैं, जो जीवन के आदर्शों की व्याख्या करती हैं। इनमें से गंगावतरण की कथा मुख्य है। गंगा जी विष्णुलोक से आती हैं। यह अवतरण महान् आध्यात्मिक शक्ति के रूप में होता है। उसे संभालने का प्रश्न बड़ा विकट था। शिवजी को इसके उपयुक्त समझा गया और भगवती गंगा को उनकी जटाओं में आश्रय मिला। गंगा जी यहाँ ज्ञान की प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति के रूप में अवतरित होती हैं। लोक-कल्याण के लिए उसे धरती पर प्रवाहित करने की बात है, ताकि अज्ञान से मरे हुए लोगों को जीवन दान मिल सके, पर उस ज्ञान को धारण करना भी तो कठिन बात थी, जिसे शिव जैसा संकल्प-शक्ति वाला महापुरुष ही धारण कर सकता है। अर्थात् महान् बौद्धिक क्रांतियों का सृजन भी कोई ऐसा व्यक्ति ही कर सकता है, जिसके जीवन में भगवान् शिव के आदर्श समाये हुए हों, वही ब्रह्म-ज्ञान को धारण कर उसे लोक-हितार्थ प्रवाहित कर सकता है।
गृहस्थ होकर भी पूर्ण योगी होना शिवजी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना है। सांसारिक व्यवस्था को चलाकर भी वे योगी रहते हैं, पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। वे अपनी धर्मपत्नी को भी मातृशक्ति के रूप में देखते हैं। यह उनकी महानता का दूसरा आदर्श है। यहाँ उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि गृहस्थ रहकर भी आत्म-कल्याण की साधना असंभव नहीं। जीवन में पवित्रता रखकर उसे हँसते-खेलते पूरा किया जा सकता है।
यह सभी आदर्श इस बात की शिक्षा देते हैं कि मनुष्य शिव की तरह पदार्थों और समाज में प्रचलित परंपराओं का आध्यात्मिक मूल्यांकन करना सीख लें तो निःसंदेह उसका शारीरिक और सामाजिक जीवन अधिकाधिक निरापद होता चला जायेगा। संक्षेप में कहा जा सकता है कि शिव मानव-जीवन की उन सभी आध्यात्मिक विशेषताओं के प्रतीक हैं, जिनके बिना मनुष्य-जीवन पाने का अर्थ हल नहीं होता। मनुष्य का धर्म उसकी विवेक-बुद्धि है, जिसके सहारे वह ज्ञान-विज्ञान की ओर अग्रसर होता है और मनुष्य से देव बनने में समर्थ होता है। इस तरह की सामर्थ्य प्राप्त करके ही आत्म-कल्याण और लोकहित की परंपरा जीवित रखी जा सकती है। यह संदेश हमें आदिकाल से भगवान् शिव देते चले आ रहे हैं। इन आध्यात्मिक रहस्यों की ओर से हमें उपेक्षा नहीं रखनी चाहिए।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न