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अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


कृष्ण का हाथ राधा के माथे पर ठहर गया। माथा गरम था। निश्चित रूप से राधा को ज्वर था।

"तुम्हारा हाथ कितनी शीतलता देता है।" राधा जैसे अचेतनावस्था में से बोल रही थी।

"मैं तुम्हारा सिर दबा देता हूं।" कृष्ण अपने होंठों में बुदबुदाए, "तुम्हें ज्वर है राधा!"

कृष्ण का हाथ राधा के माथे पर फिरता-फिरता उसके केशों को सहलाने लगा थाः कितने चिकने और मुलायम बाल थे राधा के। इच्छा होती थी, खूब मन लगाकर उन बालों को संवारा जाये और जब बाल पूरी तरह संवर जायें, राधा उन्हें देखे और इठलाने की मनःस्थिति में आये तो कृष्ण अपनी अंगुलियों के बवण्डर से उस सारी केश-सज्जा को बिगाड़ दें और खिलखिलाकर हंस पड़ें...

कृष्ण का अपना माथा तपता जा रहा था। वक्ष में जैसे भट्ठी तपने लगी थी और सांस रुकने-सी लगी थी। वे देख रहे थे कि राधा उनकी गोद में सिर रखकर लेटी हुई है। उनका हाथ उसके माथे को दबाता-दबाता उसके बालों के साथ-साथ कपोलों को भी सहलाता जा रहा था...उनका विवेक उन्हें रोक रहा था और हाथ था कि विवेक के कहने में नहीं रहना चाहता था...

क्या था यह सब? क्या सचमुच राधा अस्वस्थ थी और उसे इस क्षण विश्राम की आवश्यकता थी, या वह अस्वस्थता की आड़ में अपनी किसी अन्य इच्छा की पूर्ति कर रही थी...और स्वयं कृष्ण ? वे सचमुच रोगी की शश्रुषा कर रहे थे या स्पर्श के अनाम सुख का भोग...

पर कृष्ण का विवेक तब भी उन्हें रोक रहा था...राधा अय्यन की वाग्दत्ता है। वह कभी कृष्ण की नहीं हो सकती। फिर, जो उनकी हो नहीं सकती, उसके प्रति ऐसा व्यवहार?...पर इसमें कृष्ण का क्या दोष? कृष्ण ने तो यह सब नहीं चाहा था। पर राधा? राधा तो अस्वस्थ थी। अस्वस्थ व्यक्ति की बाध्यता का लाभ?

वह प्रश्न आज भी कभी-कभी कृष्ण के मन में कसकने लगता है।...यदि राधा अस्वस्थ न होती, तो क्या वैसे भी कृष्ण की गोद में सिर रखकर लेट जाती? यदि कहीं राधा ने स्वस्थ अवस्था में ऐसा किया होता तो कृष्ण का व्यवहार क्या होता? वे राधा की कामना जान उसे स्वीकृति देते? क्या उसे अय्यन से अपना सम्बन्ध तोड़ लेने का परामर्श देते? राधा ने अस्वस्थ अवस्था में यदि अपनी कामना प्रकट भी की तो कृष्ण के मन में वह घटना ग्लानि-बोध छोड़ गयी। वह तो रोगी की आवश्यकता थी, उसे कृष्ण ने राधा की कामना कैसे मान लिया? राधा तो उसके बाद भी उनकी सखी ही रही-सखी से बढ़कर उसने कभी कुछ होना भी नहीं चाहा।

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    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

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