पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
आज कृष्ण सोचते हैं तो बहुत सारी बातें उनके मन में उठती हैं। तब क्या वय था कृष्ण का? चौदह वर्ष!...आज वे प्रेम और नारी-पुरुष के आकर्षण के विषय में बहुत कुछ सोचते-समझते हैं। वे जानते हैं कि जब एक किशोर, किसी किशोरी की किसी भंगिमा पर पिघल-पिघल जाता है, तो वह नहीं जानता कि प्रकृति उसके भीतर सृष्टि की कामना उत्पन्न कर रही है। जब किशोरी एकान्त कक्ष में अपना श्रृंगार करती है, तो वह अनजाने ही प्रकृति की उसी सृष्टि-कामना को अभिव्यक्ति कर रही है। प्रकृति अपने-आपको नवीन सृष्टि की परम्परा में अभिव्यक्ति देती रहती है और उसकी पूर्ति करता है पुरुष को आकृष्ट करने वाला स्त्री का रूप और उस रूप के सामने अवश होने वाला पुरुष का मन...
पर तब तो कृष्ण यह सब नहीं समझते थे। उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ वय से पहले समझा और बूझा है; पर प्रकृति के उस प्रपंच से उन्हें किसने सुरक्षित रखा-वे आज तक समझ नहीं पाये।
आज सोचते हैं तो उन्हें लगता है कि प्रकृति का वह प्रलोभन बहुत मोहक था ...कुंज में उनकी गोद में सिर रखकर सो जाने वाली राधा, वनों में एकान्त होते ही उनके कन्धे पर हाथ रख सखी भाव से बातें करने वाली ललिता, स्वयं से सदा भागने की शिकायत करने वाली-अनेक सखियां थीं वृन्दावन में। पर तब तक कृष्ण के मन में कंस के अत्याचारों का रूप स्पष्ट हो चुका था। कृष्ण प्रकृति की एक इच्छा-'सृष्टि'-को अर्पित हो गये होते, तो अत्याचार का विरोध कर प्रकृति में सन्तुलन स्थापित करने की ओर कैसे बढ़े होते-पर यह सब न उद्धव ने समझा है, न भैया बलराम ने, और न ही सुदामा समझेगा। और अब तो वे घटनाएं किंवदंतियां हो गयी हैं। कृष्ण किसे-किसे समझायेंगे कि वृन्दावन में किस गोपी के साथ उनका क्या सम्बन्ध था। अब तो कोई चर्चा करता है, तो वे मुस्कराकर रह जाते हैं...
सुदामा स्नान कर कक्ष में लौटे, तो सत्यभामा ने दासियों के साथ कक्ष में प्रवेश किया। सत्रजित के धन, कृष्ण से शत्रुता, स्यमंतक मणि और सत्यभामा से कृष्ण के विवाह की कथा सुदामा को ज्ञात थी। सुदामा ने कुछ उत्सुकता के साथ सत्यभामा को देखा : वे वय में रुक्मिणी से कुछ छोटी थीं। सत्यभामा कम सुन्दरी नहीं थीं, पर रुक्मिणी में गरिमा अधिक थी।
सत्यभामा ने सुदामा से बात करने या परिचय बढ़ाने का कोई प्रयत्न नहीं किया।
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