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अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


कृष्ण ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया। उनका ध्यान रथ के घोड़ों पर केन्द्रित रहा।

"बात केवल द्यूत के खेल की नहीं है।" कछ क्षण पश्चात कृष्ण धीरे-से बोले, "धृतराष्ट्र जन्मांध थे, इसमें उनका कोई दोष नहीं था। बड़े भाई की अक्षमता के कारण पाण्डु को राजा बनाया गया तो पाण्डु का भी दोष नहीं था। धृतराष्ट्र के पुत्र के रूप में दुर्योधन को अपने पिता की अपंगता के कारण वंचित होना पड़ा। पर इससे उसको यह अधिकार नहीं मिल जाता कि वह पाण्डवों की हत्या का प्रयत्न करे-जो उसने किया। फिर भी कौरवों के राज्य का बंटवारा हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ के रूप में हुआ तो बहुत गलत नहीं हुआ। किन्तु, दुर्योधन की प्रतिहिंसा अभी शान्त नहीं हुई है। वह पाण्डवों की सम्पन्नता को देखकर ईर्ष्या से जल रहा है। वह द्रौपदी को न पा सकने के कारण अपनी द्वेषाग्नि को बुझा नहीं पा रहा है। उसके वश में होता तो वह सेनाएं लेकर इन्द्रप्रस्थ पर चढ़ दौड़ता, पर वह उसके लिए सम्भव नहीं है। अब उसने द्यूत का निमन्त्रण भेजा है। इस निमन्त्रण का अर्थ जानते हो?" कृष्ण ने रुककर सुदामा को देखा।

"नहीं।" सुदामा ने बिना कुछ सोचे-समझे सिर हिला दिया।

"आज के समाज में युद्ध-काल में क्षत्रिय शस्त्र धारण करता है और शान्ति-काल में पासा। ये उसके क्षत्रियत्व के लक्षण हो गये हैं। इसलिए अपने स्वाभिमान, अपने गौरव की रक्षा के लिए युधिष्ठिर इस निमन्त्रण का तिरस्कार नहीं करेंगे। इस निमन्त्रण के तिरस्कार से पाण्डवराज समाज में तिरस्कृत हो जायेंगे। वैसे भी एक मैत्रीपूर्ण खेल के निमन्त्रण को युधिष्ठिर कैसे अस्वीकार करेंगे। पर यदि यह द्यूत हुआ तो जानते हो परिणाम क्या होगा?" कृष्ण ने पुनः सुदामा की ओर देखा।

"नहीं।" सुदामा बोले।

"पहली बात तो यह है कि युधिष्ठिर शकुनि के कपट के आगे जीत नहीं पायेंगे। दूसरी यह कि यदि युधिष्ठिर जीत गये तो दुर्योधन झगड़ा करेगा, जिसकी परिणति युद्ध में होगी और यदि युधिष्ठिर हार गये तो पाण्डवों का राज्य समाप्त हो जायेगा...जिसका परिणाम अन्ततः युद्ध होगा। और सबसे बड़ी आशंका मुझे यह है कि दुर्योधन की प्रतिहिंसा को शान्त करने में जम्बूद्वीप के क्षत्रियों को एक निरर्थक युद्ध से बचाने के लिए युधिष्ठिर कहीं स्वेच्छा से ही सब कुछ हार न जायें।" कृष्ण ने अब पूरी तरह उग आये सूर्य की ओर देखा, "मुझे युद्ध अवश्यंभावी दीख रहा है। दुर्योधन की प्रतिहिंसा इस समाज का नाश करके ही छोड़ेगी।"

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    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

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