लोगों की राय

पौराणिक >> अभिज्ञान

अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

10 पाठक हैं

कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...

ग्यारह


"कृष्ण! तुम्हारा यह विश्लेषण तो बच्चों के लिए एक उपदेशात्मक कथा है, जिसमें यह बताया गया है कि परिश्रम करने से उसका सुफल मिलता है और परिश्रम नहीं करने से अन्त में हानि होती है। आदर्श लोक के लिए तुम्हारी कथा ठीक है; किन्तु जीवन की सच्चाई यह नहीं है।' सुदामा के स्वर में हल्का-सा आवेश था।

कृष्ण मुस्कराये, "जीवन की सच्चाई क्या है सुदामा?"

"जो परिश्रम करता है, वह असफल रहता है और जो कामचोरी करता है, वह अन्ततः लाभ में रहता है।" सुदामा का आवेश कम नहीं हुआ।

"तुम्हारे विश्लेषण में कहीं कोई दोष रह गया है सुदामा! क्योंकि कार्य-कारण, क्रिया-प्रतिक्रिया की श्रृंखला में कहीं कोई अपवाद है नहीं। अपवाद हो नहीं सकता। कारण होगा तो कार्य होगा। क्रिया होगी तो प्रतिक्रिया भी होगी ही। काम होगा तो फल भी होगा ही।" कृष्ण पूर्णतः शान्त थे, "कोई उदाहरण है तुम्हारे सामने?"

"उदाहरण! उदाहरण मैं हूं।" सुदामा ने कम ही अपना धैर्य ऐसे छोड़ा था। वे एक धीर अध्ययनशील विद्वान् के स्थान पर धैर्यहीन शंकालु व्यक्ति हो गये थे, "मैंने सब ओर से अपना मन मारकर, अपने परिवार की उपेक्षाकर, अपना सिर पुस्तकों, ग्रन्थों और सिद्धान्तों में गड़ा दिया। यथासम्भव मनोयोग और परिश्रम से ज्ञान के क्षेत्र में डटा रहा। पर क्या मिला मुझे? निर्धनता, उपेक्षा, पत्नी और बच्चों का कष्ट देखने की पीड़ा। और जिन्होंने ज्ञान-मार्ग छोड़ दिया, जो चापलूसी और झूठ पर उतर आये, उन्होंने पाया धन और सम्मान, ऊंचे-ऊंचे सम्पर्क तथा पद।"

कृष्ण तनिक भी हतप्रभ नहीं हुए। वे मुस्कराये, जैसे कोई वयस्क, किसी बच्चे की भूल पर मुस्कराता है, "मेरा विचार है कि पहले हम 'कर्म' और 'फल' शब्दों का अर्थ स्पष्ट कर लें। मुझे लगता है कि उनको समझने में ही कहीं भ्रांति है। मेरे मन में उनका अर्थ कुछ और है और तुम्हारे...।"

"तुम्हारे मन में क्या अर्थ है उनका!" सुदामा को स्वयं ही अपने स्वर में उद्दण्डता का आभास हुआ। मन में आयी पूरी बात वे कह नहीं पाये; किन्तु कहने के बाद का अनकहा वाक्य उनके भीतर गूंजता चला गया, 'क्या समझता है कृष्ण! सुदामा को इन शब्दों का अर्थ भी नहीं मालूम। इतना जड़ समझता है वह सुदामा को? शब्दों के अर्थ भी भिन्न होते हैं, ताकि दो व्यक्ति उनके दो अलग-अलग अर्थ समझ बैठे?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book