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अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


सुदामा को लगा कि उन्हें दर्शन और अध्यात्म को अलग-अलग करके देखना चाहिए। दर्शन तो केवल भावात्मक चिन्तन नहीं करता। वह तो सृष्टि के भौतिक पदार्थों का भी परीक्षण करता है और उनके सत्य को भी खोज निकालता है। समस्त चिन्तन तो व्यर्थ और निस्सार नहीं हो सकता। चिन्तन के अभाव में आयुर्विज्ञान का विकास कैसे होता? कृषि की पद्धतियों का अनुसन्धान कैसे होता? विभिन्न अन्नों तथा खाद्य-पदार्थों का ज्ञान मनुष्य को कैसे होता? मनुष्य पशु-पालन कैसे सीखता? आत्मरक्षा के लिए शस्त्रों का निर्माण कैसे होता? गति के लिए पहिया न खोजा गया होता, तो मनुष्य वाहनों का विकास कैसे करता? चिन्तन न होता तो भूगोल, खगोल तथा ज्योतिष का ज्ञान कैसे प्राप्त होता?

तो सारा आक्रोश क्या केवल अध्यात्म-चिन्तन के विरुद्ध ही है? क्या अध्यात्म-चिन्तन सर्वथा अनुपयोगी है? तो फिर समाज उसका बोझ क्यों ढो रहा है?

अध्यात्म के माध्यम से प्राप्त अलौकिक शक्तियों और उनके चमत्कारों में सुदामा का कभी विश्वास नहीं रहा। यदि ऐसा कुछ होता तो अपनी लम्बी साधना से वे भी कुछ शक्तियां प्राप्त कर लेते और कम-से-कम अपनी निर्धनता दूर कर लेते। फिर न उन्हें ग्राम-प्रमख के पास जाना पड़ता और न वह उन्हें अपमानित कर पाता। सुदामा तो सदामा ही थे...बड़े-बड़े ऋषियों के विषय में भी यही बताया जाता है कि किसी वस्तु की इच्छा होने पर उन्हें याचक बनकर, राज-दरबारों में जाना पड़ता है। यह सम्भव है कि अपनी साधना और निरन्तर अभ्यास से वे कार्य करने की कुछ अद्भुत विधियों का आविष्कार कर लेते हों। अपने अनवरत चिन्तन से कुछ नये समाधान और सत्य पा लेते हों। अपने सूक्ष्म विश्लेषण से भावी घटनाओं का आभास पा लेते हों। इन सबको ही क्या उनकी आध्यात्मिक शक्ति का चमत्कार कहा जाता है?

इधर योग-साधना के माध्यम से कुछ अद्भुत शक्तियां प्राप्त करने का बहुत प्रचार है। कृष्ण योगीश्वर माना जाता है, पर वह भी सामान्य सैनिकों अथवा यात्रियों के समान अपना रथ जगह-जगह दौड़ाता फिरता है। अपने शत्रुओं के साथ, साधारण क्षत्रियों के समान युद्ध करता है। उसके राज्य में भी, उत्पादन के लिए अन्य राज्यों के समान मनुष्य श्रम करता है। यहां भी न्याय-अन्याय, स्वार्थ-परमार्थ, उचित-अनुचित का संघर्ष वैसे ही चल रहा है, जैसे अन्य राजाओं में। कृष्ण की योग शक्ति ने किसी चमत्कार का प्रदर्शन नहीं किया है। हां! शारीरिक और मानसिक व्यायाम के रूप में इसने उसकी कार्यक्षमता को अद्भुत रूप से बढ़ा अवश्य दिया है। वह अस्वस्थ नहीं होता, आलस उसे छूता नहीं, उसमें कभी ऊर्जा का अभाव नहीं होता। जितना कार्य वह करता है, और जितनी समस्याओं का समाधान उसके माध्यम से होता है, उतना और किसी के बस का नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

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