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अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


यह क्या सोचने लगे सुदामा?

राजकीय पण्डित होकर तो कोई भी यही सोचेगा। यह सब सुदामा ने नहीं सोचा था, यह सब तो राजनीतिक महत्त्व पाये हुए एक मूर्ख ने सोचा था, जो समझता है कि वह राजसी महत्त्व से ज्ञान के क्षेत्र में उथल-पुथल मचा देगा और विद्वानों, विचारकों, लेखकों को अपने दासों-परिचारकों के समान उन्नत-अवनत करता रहेगा। राजनीतिक स्वामियों से महत्त्व पाकर, वह यह भूल जाता है कि राजा को तो दस-बीस वर्ष रहना है, पर पुस्तक को सहस्रों वर्ष जीना है। अल्पकालीन महत्त्व के लिए ज्ञान को कलंकित नहीं किया जा सकता। सुदामा ज्ञान की गरिमा को समझते हैं। वे न स्वयं को अपमानित करेंगे, न कृष्ण को कलंकित।

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    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

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