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अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


आज अपनी इस तैयारी की अवधि में सुदामा की मग्न-सी मुद्रा और बीच-बीच में आत्म-विस्मृति की-सी अवस्था में किसी श्लोक को गुनगुना उठना-उनके उत्साह को प्रकट कर रहा था।

जब लगा कि सुदामा अब चल ही देंगे तो सुशीला से नहीं रहा गया, "श्रेष्ठि धनदत्त के पौत्र के मुण्डन के उत्सव में जा रहे हैं?'

सुदामा ने आहत दृष्टि से सुशीला की ओर देखा, "ऐसा कोई निमन्त्रण है क्या?"

प्रश्न और प्रतिप्रश्न से दोनों के मन का बहुत कुछ अनकहा भी स्पष्ट हो गया।

"व्यक्तिगत निमन्त्रण तो नहीं है, पर..." वह बोली, "प्रत्येक ब्राह्मण परिवार को निमन्त्रित किये जाने की डोंडी पिटी है।"

"सुदामा भिखारी नहीं है।"

"भिखारी का क्या अर्थ?" सुशीला का स्वर कुछ आवेशपूर्ण हो गया, "यही परम्परा है। श्रेष्ठि ने सारे ब्राह्मण परिवारों को आमन्त्रित किया है। लोग सपरिवार जायेंगे, भोजन करेंगे, श्रेष्ठि के पौत्र को आशीर्वाद देंगे, दक्षिणा पायेंगे।"

सुदामा के चेहरे पर वितृष्णा जागी।

"आप यह न करें।"

"तो?"

"आपके जाने से श्रेष्ठि प्रसन्न होंगे। उन्होंने कई बार ऐसा भाव प्रकट किया है। उनके पास पचासों प्रकार के काम-धन्धे हैं।" सुशीला रुकी, "आखिर विद्वानों को भी आजीविका की आवश्यकता तो होती ही है।"

सुदामा का चेहरा मलिन हो गया, "संसार में एक श्रेष्ठि धनदत्त ही तो नहीं है-श्रेष्ठियों और सामन्तों को आशीर्वाद देकर, उनकी चाटुकारिता में थोड़ा समय बिताने से ही सुदामा धनियों में गिना जाने लगेगा।' सुदामा ने रुककर क्षण-भर सुशीला को निहारा, "हीन-बुद्धि और हीन-ज्ञान तुच्छ ब्राह्मणों के समान, हाथ उठा-उठाकर धनियों को आशीर्वाद देता सुदामा क्या तुम्हें अच्छा लगेगा। अपने पति का यही रूप देखना चाहती हो?"

"यहां आपकी विद्वत्ता का मूल्य समझने वाला कौन है?"

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    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

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