पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
पर आचार्य ज्ञानेश्वर में कोई जादू था क्या! उनके व्याख्यान के लिए इतने लोग एकत्रित हुए थे। कितने तो रथ ही खड़े थे बाहर। लगता था, इस नगर के ही नहीं, आसपास के भी अनेक नगरों के रथ यहीं एकत्रित कर दिये गये हैं। उनके आसपास सारथियों और परिचारकों की भीड़ थी। यह धनाढ्य वर्ग आज इस ज्ञान-यज्ञ में कैसे उमड़ पड़ा? इन्हें तो नर्तकियों, नटों, पहलवानों और अभिनेताओं, द्यूत आयोजनों और आपानकों से ही अवकाश नहीं है।
निकट आने पर सुदामा को उस भीड़ में अनेक दण्डधर दिखाई पड़े। सुदामा की आँखें फट गयीं। मन को धक्का लगा। यहां दण्डधरों का क्या काम? ‘पर शायद वे लोग व्यवस्था के लिए बुलाये गये होंगे।' वे संभले, 'इतनी भीड़ है तो व्यवस्था तो रखनी ही पड़ेगी।'
दण्डधर व्यवस्था संभाल भी रहे थे। उन्होंने विभिन्न मार्ग बना रखे थे। एक-एक व्यक्ति का परिचय पूछ-पूछकर, विभिन्न मार्गों से भवन के भीतर भेजा जा रहा था।
"क्यों भाई! आज बहुत प्रबन्ध करना पड़ रहा है।" सुदामा ने बिना किसी लक्ष्य के ही एक दण्डधर से चर्चा आरम्भ की।
"हां जी! कोई राजपुरुष आये तो व्यवस्था करनी ही पड़ती है।"
"राजपुरुष!" सुदामा चौंके, "कोई राजपुरुष आ रहा है क्या?"
"और नहीं तो क्या, यह सारी प्रजा और श्रेष्ठि तुम्हारे दर्शनों के लिए एकत्रित हुए हैं?" दण्डधर उद्दण्डता पर उतर आया था।
सुदामा का सारा तेज बुझ गया, "पर यहां तो आचार्य ज्ञानेश्वर आने वाले थे।" अनायास ही उनके मुख से निकला।
"हां! वह भी आ रहा है।" दण्डधर ने पीछे से आने वाले लोगों को मार्ग देने के लिए, सुदामा को एक ओर हटा दिया।
सुदामा एक ओर ही नहीं हटे, कुछ पीछे भी हट आये, जैसे वे भीतर जाना ही न चाहते हों। दण्डधर के शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे। उसने आचार्य ज्ञानेश्वर के लिए कहा था, 'हां! वह भी आ रहा है।' तो यह सारा आयोजन आचार्य ज्ञानेश्वर के लिए है या उस आगंतुक राजपुरुष के लिए? पर दण्डधर की बात पर क्या जाना। वह तो कोई निपट अनपढ़ मूर्ख है। उसे क्या पता कि आचार्य ज्ञानेश्वर कौन हैं और उनका क्या महत्त्व है। उसके पास जो दण्ड है, वह राजसत्ता का प्रतीक है, तो फिर उसके लिए राजपुरुष ही महत्त्वपूर्ण होगा।
सुदामा आगे बढ़ गये। वे उस मूर्ख दण्डधर के पास पुनः नहीं जाना चाहते थे। वे किसी अन्य द्वार से भीतर जायेंगे।
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- अभिज्ञान