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अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...

छह


प्रातः सुदामा की आँख खुली तो उन्हें लगा, अभी भी उनका सिर भारी था। उन्हें लगा, सिर से भी अधिक भारी उनका मन था। क्या-क्या अपेक्षाएं लेकर, वे आचार्य ज्ञानेश्वर का व्याख्यान सुनने गये थे और कैसी ग्लानि हुई थी वहां जाकर...पर इतना खिन्न होने की क्या बात है। सुदामा ने स्वयं को समझाया-पर खिन्नता दूर नहीं हुई। उनके मन का एक स्वप्न टूट गया था...एक पूजनीय का यह घृणित रूप...सुदामा के मन ने स्वयं को विद्वानों से जोड़ लिया था। उन्हें उच्च और श्रेष्ठ मान लिया था। उनका ऐसा रूप देखकर मन पीड़ित नहीं होगा।

क्या है यह सब?

क्यों करते है ये विद्वान् ऐसा आचरण? और सहसा सदामा के मन में जैसे एक समाधान कोध गया। आचार्य ज्ञानेश्वर, राजपुरुष के निकट एक विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित किये गये थे। जहां वे हैं, जो वे हैं, उससे ऊपर उठने की सम्भावना उन्हें दिखाई पड़ी होगी। वे यदि आचार्य हैं तो राजपुरुष की कृपा से कलपति बन सकते हैं। द्वारका के दरबार से प्रशस्ति-पत्र प्राप्त करने की या किसी परिषद् में उनके मनोनीत होने की सम्भावना हो सकती है...। सुदामा क्या है...। अधिक-से-अधिक गाँव के एक साधारण ब्राह्मण अध्यापक के रूप में उनका परिचय दिया जायेगा। उन्हें न कोई आचार्य बनायेगा, न कलपति। न उन्हें कोई प्रशस्ति-पत्र मिलने जा रहा है, न वे किसी परिषद् में मनोनीत होंगे। जब कोई सम्भावना ही नहीं है, तो उनके मुख से लार क्यों टपके? क्यों वे राजपुरुषों के सामने नाक रगड़ें, अपना स्वाभिमान नष्ट करें?

सुदामा के सामने प्रकृति की द्वन्द्वात्मकता स्वतः खुलने लगी...सांसारिक प्रतिस्पर्धा में मनष्य जितना ऊंचा उठता है, उतना सबल, दृढ और स्वाभिमानी होने के स्थान पर वह उतना ही दुर्बल, लोलुप और चरित्रहीन होता जाता है। जिसको जितना कम मिला है, वह अपने स्थान पर उतना ही सन्तुष्ट है और जिसको जितना अधिक मिला है, वह उतना ही मुंह बाये हुए है...क्या स्वयं सुदामा तभी तक स्वाभिमानी, त्यागी और चरित्रवान् हैं, जब तक उनके सामने कोई टुकड़ा नहीं फेंका गया? क्या टुकड़ा सामने देखते ही, उनके मुख से भी आचार्य ज्ञानेश्वर के समान लार टपकने लगेगी? क्या वे भी अपना सारा स्वाभिमान भूलकर लोलुप कुत्ते के समान टुकड़े पर जा झपटेंगे...उन्हें लगा, उनका मन अपनी आतुरता में अत्यन्त आस्तिक हो उठा है। उनकी आँखें मुंद गयीं और मन-ही-मन हाथ जोड़कर उनकी आत्मा ने याचना की, 'हे प्रभु! प्रलोभन देकर मेरा परीक्षण मत करना।'

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    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

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