पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
बाबा हंस पडे, "नहीं बिटिया! वह घुमक्कड नहीं है, पर वह बहुत सारे स्थानों पर, बहुत सारी घटनाओं में उलझा रहता है। अब देखो," उन्होंने रुककर सुशीला को देखा, "मथुरा से सारे यादवों को सुरक्षित निकाल वह द्वारका ले गया। जरासंध इधर टापता रह गया और कालयवन को उसने मार डाला। इससे हआ यह कि जरासंध और उसक साथा कृष्ण से इतने रुष्ट हुए कि उन्होंने स्वयं को संघबद्ध करना आरम्भ कर दिया। फिर कृष्ण उन्हें अंगूठा दिखा, जरासंध, रुक्मी और शिशुपाल के बीच में से रुक्मिणी का हर लाया।" बाबा तनिक-सा रुककर फिर बोले, "कृष्ण को जब यह सूचना मिली कि पांचों पाण्ड वारणावत में जलकर मरे नहीं हैं, तो वह उनकी खोज में निकल गया। उद्धव ने उसे सूचना दी कि वे लोग वन में छिपे हुए हैं और भीम वृकोदर के रूप में हिडिम्बा का पति और राक्षसों का राजा बना बैठा है। कृष्ण ने उनसे सम्पर्क किया और उन्ह पांचाल की राजधानी कांपिल्य में, द्रौपदी के स्वयंवर के अवसर पर प्रकट किया। वहां भी जरासंध आर उसके साथियों की हार हुई। इन्द्रप्रस्थ के निर्माण के पश्चात पाण्डव और पांचाल कृष्ण के सशक्त सहयोगी हो गये थे...।" बाबा कुछ रुके "मैं जब पहली बार द्वारका गया था, तब कृष्ण इन्द्रप्रस्थ का निर्माण करा, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक कर द्वारका लाटा था। कृष्ण के काफी समय तक द्वारका से दूर रहने के कारण, द्वारका के यादव पर्याप्त शिथिल हो गये थे। उनमें भोग की प्रवृत्ति बढ़ गयी थी। कृष्ण के विरोधी सत्राजित और उसके साथियों ने अपनी शक्ति काफी बढ़ा ली थी। स्यमंतक मणि वाली घटना तभी घटी थी। कृष्ण ने अपने प्राणों पर खेलकर स्यमंतक मणि लौटाई थी और सत्यभामा तथा जाम्बवती से विवाह किया था। पर फिर भी कृष्ण द्वारका में कहां टिक पाया। उसे पाण्डवों के राजसूय-यज्ञ में इन्द्रप्रस्थ जाना पड़ा। उसी में उसने जरासंध का
भीम से वध करवाया और शिशुपाल को अपने हाथों मारा। वह इन्द्रप्रस्थ में था और इधर शिशुपाल के मित्र शाल्व ने द्वारका पर आक्रमण कर दिया।"
"यादव सेनाओं ने उसे रोका नहीं?" सुशीला के चेहरे पर भोली जिज्ञासा थी।
"क्या सुदामा ये सारी सूचनाएं तुम्हें नहीं देता?" बाबा ने आश्चर्य से पूछा।
"मुझे सब कुछ स्वयं ही ज्ञात नहीं होता।" सुदामा एक फीकी हंसी हंसे, "कुछ अपनी पुस्तकों में डूबा रहता हूं। कुछ इधर लोगों का आवागमन ही कम है; और फिर मेरे जैसा व्यावहारिक जीवन में असफल व्यक्ति, अपने सफल साथियों की कितनी खोज-खबर रख सकता है।"
बाबा सुदामा को देखते रहे। फिर बोले, "तुम्हारी यह ईर्ष्या तो अच्छी नहीं है सुदामा!"
"मैं कोई जान-बूझकर करता हूं।" सुदामा खिसियाए-से बोले, "जब कृष्ण की इन सारी सफलताओं के विषय में सुनता हूं तो कभी प्रसन्नता होती है और कभी अपने अभावों के घाव खुल जाते हैं।"
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