लोगों की राय

पौराणिक >> अभिज्ञान

अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

10 पाठक हैं

कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


सहसा उनके मन में आया, नहीं! बात केवल सामाजिक स्थिति की ही नहीं है। काम करने के लिए घर से बाहर निकलने वाली स्त्रियों के सम्मुख कुछ कठिनाइयां हैं। वे बाहर निकलेंगी तो विभिन्न प्रकार के लोगों से उनका सामना होगा। उनमें कुछ अच्छे लोग होंगे, तो कुछ दुष्ट भी तो होंगे। उन दुष्टों से उनकी रक्षा कौन करेगा? स्त्री शरीर से निर्बल है। वह अपनी रक्षा में सक्षम नहीं है। सुशीला ही किसी के घर काम करे। कैसा ही सम्मानजनक काम क्यों न हो-पर व्यक्ति कैसे होंगे, कौन कह सकता है? चाकरी करने के लिए घर से बाहर भेजने से पहले उसकी सुरक्षा का प्रबन्ध तो करना होगा...।

और यदि काम करने का स्थान सुरक्षित हो तो? सहसा उनके मन में दूसरा स्वर उठा-तब क्या सुशीला की चाकरी में उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी?

हां! शायद न ही हो आपत्ति! पर सुरक्षित स्थान है कहां?

क्यों नहीं? मान लो, सुशीला को द्वारका में कृष्ण के महल में कोई कार्य मिल जाये...

सुदामा स्तब्ध रह गये।...उनके अपने ही मन में कैसी-कैसी बातें उठ रही हैं। वे इतने पतित हो गये हैं कि अपनी पत्नी की कल्पना, अपने मित्र की दासी के रूप में कर रहे हैं। स्वयं कृष्ण के पास इसलिए नहीं जाना चाहते कि याचना से उनका वह सम्मान नहीं रह पायेगा। सुशीला उस महल में दासी बन गयी, तो क्या उनका सम्मान वही रह पायेगा?

रात को बच्चे सो गये तो सुदामा धीरे-से बोले, "सुनो!"

सुशीला ने उनकी ओर देखा।

"क्या कल भी तुम चाकरी खोजने नगर जाओगी?"

"सोचा तो यही है, पर यदि आपको आपत्ति न हो तो।"

"आपत्ति करने का अधिकार मुझे नहीं है सुशीला!" सुदामा का स्वर कांप गया, "मैंने आज दिन-भर में बहुत सोचा है। सिद्धान्ततः मैं स्त्रियों के कार्य करने के विरुद्ध नहीं हूं। पर कुछ संस्कार बांध रहे हैं और कुछ परिस्थितियां मुझे सुरक्षित नहीं लगतीं। ...कल्पना करता हूं कि यदि मैं भी अपने परिवार का अच्छी तरह भरण-पोषण करने में समर्थ होता। हमें कोई आर्थिक तंगी न होती। मैं भी दोनों हाथ से धन बहा सकता; और तब तुम अर्थोपार्जन के लिए कोई काम करतीं, तो शायद मुझे इतना कष्ट न होता।... पर आज की इन परिस्थितियों में, तुम्हारा अर्थोपार्जन मेरी असमर्थता और अक्षमता को रेखांकित करेगा। इससे...यदि सच-सच कहूं तो...मेरा अहंकार आहत होता है। पर सुशीला!" सुदामा ने साहस कर अपनी पत्नी की ओर देखा, "तुम्हें रोकने का मुझे कोई नैतिक अधिकार नहीं है। पर, फिर भी चाहता हूं कि मुझे प्रयत्न का एक अवसर और दो। यदि इस बार असफल रहा तो तुम्हें एकदम नहीं रोदूंगा...सच कहता हूं, एकदम नहीं रोकूंगा...।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book