पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
सात
चलते-चलते प्रहर भर बीत चुका था।
चलने में उन्हें कोई विशेष कष्ट नहीं था। बचपन में अपने पिता के साथ भी वे पैदल यात्राएं करने के अभ्यस्त थे। गुरु सांदीपनि का अनुशासन तो और भी कठोर था। सारी सुविधाएं होने पर भी वे धरती पर पैदल यात्राएं ही करते थे। जल की बात और थी-जल पर तो पैदल चला नहीं जा सकता था, नौका लेनी ही पड़ती थी। किन्तु, स्थल-यात्रा के समय यदि संघ में साथ-साथ चलने वाले हाथी, घोड़े तथा रथ भी हों, तो भी वे पैदल ही चलते थे और अपने शिष्यों को पैदल ही चलाते थे। पालकी से तो वे घृणा करते थे। मनुष्य होकर, मनुष्य के कन्धों पर चढ़कर यात्रा करने को बर्बरता मानते थे। और कितनी लम्बी यात्राएं... उज्जयिनी से मथुरा और उज्जयिनी से प्रभास। जब पहली बार कष्ण, बलराम और उद्धव, ब्रह्मचारी के रूप में उनके संघ में सम्मिलित होकर, मथुरा से उज्जयिनी के लिए चले थे, तो साथ कितने ही राज-परिवार और उनके वाहन थे; किन्तु गुरु ने किसी ब्रह्मचारी को वाहनों में यात्रा करने की अनुमति नहीं दी थी-कृष्ण को भी नहीं। सभी पैदल चले थे।...आश्रम छोड़ने के बाद भी, सुदामा ने कभी किसी सवारी पर यात्रा नहीं की थी। क्षमता ही नहीं थी। जब पेट भर खाने और तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ा भी न हो, तो व्यक्ति वाहन और सवारी की बात क्या सोचे!...बहुत चर्चाएं थीं, इस देश में दान की महिमा की। प्रत्येक राजा, सामन्त, नायक, ठाकुर, ग्राम-प्रमुख, श्रेष्ठि और सद्गृहस्थ ब्राह्मणों को सैकड़ों-हज़ारों गौएं दान कर देता था। ऋषियो के आश्रमों में गोधन बहुत बड़ी संख्या में होता था...पर सुदामा को तो आज तक किसी ने एक बकरी भी नहीं दी...
सहसा सुदामा के मन में एक विरोधी स्वर उठा...किसी को क्यों कलंक लगाते हैं वे। जहां कहीं कुछ मिलने की सम्भावना होती है, वहां कभी गये भी वे? गाँव के निर्धन खेतिहरों के बच्चों को पढ़ाने से दो मुट्ठी अन्न ही तो मिलेगा। दान भी तो अपनी क्षमता के अनुसार ही दिया जाता है। उन्होंने भी गुरु सांदीपनि के समान राजाओं, राजकुमारों और राजपुरुषों को शिक्षा दी होती तो उनका भी आश्रम होता और उस आश्रम में गोधन होता। राजा लोग उन्हें सोना-चांदी भी देते और रत्न-आभूषण भी। पर राजाओं को सदामा क्या शिक्षा देंगे? राजाओं को शस्त्र-शिक्षा चाहिए। राजनीति और युद्धों की शिक्षा चाहिए। इनका ज्ञान न सुदामा के पिता को था, न सुदामा को है। जब वे राजाओं के लिए उपयोगी शिक्षा नहीं दे सकते तो राजा उन्हें गोधन क्यों देंगे? उनकी चिन्ता क्यों करेंगे? राजाओं के लिए उपयोगी होने पर न द्रोणाचार्य को धन-धान्य की कमी रही, न परशुराम को, न गुरु सांदीपनि को, न गर्गाचार्य को...
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