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अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


भीतर घुसते ही सुदामा जैसे एक नये लोक में आ गये। पिछले कक्ष के वैभव को देखकर, संकुचित हो, वे एक किनारे की चौकी पर बैठ गये थे; पर इस कक्ष का वैभव-यह कक्ष उससे कहीं विशाल था। दो बड़े-बड़े पलंग बिछे हुए थे। बैठने की स्वर्णिम चौकियां, मंच और सिंहासन थे।...और असाधारण रूप से बहूमूल्य आभूषणों और परिधान में सुसज्तित, अद्भुत सुन्दरी राजन्य वर्ग की एक महिला...

"रुक्मिणी!" कृष्ण बोले, "ये मेरे मित्र हैं, सुदामा।"

तो यह रुक्मिणी है... सुदामा ने सोचा... तो इससे विवाह किया है कृष्ण ने। है भी वह कृष्ण की ही पत्नी होने के योग्य। सुदामा ने अनुभव किया कि जिस प्रकार उनके लिए रुक्मिणी के साथ साक्षात्कार अनपेक्षित था, वैसे ही रुक्मिणी भी शायद सुदामा जैसे व्यक्ति को यहां देखने की अपेक्षा नहीं कर रही थी। रुक्मिणी, कृष्ण के समान गोपगोपिकाओं में नहीं पली थी। उसका पालन-पोषण राजमहल में राजकुमारी के रूप में हुआ था। सुदामा जैसे व्यक्ति के साथ अपना या अपने पति का कोई सम्बन्ध स्वीकार करना ...पर यहां कृष्ण के गुरु सांदीपनि भी तो आते होंगे, गर्गाचार्य भी, कुछ अन्य ऋषि-मुनि भी। पर कदाचित् उनकी स्थिति के साथ गुरु, पुरोहित और ऋषि-मुनियों की गरिमा जुड़ी रहती होगी। वे कृष्ण के अख्यात् निर्धन ब्राह्मण मित्र मात्र नहीं होते होंगे...वे लोग स्वेच्छा से निर्धनता को अंगीकार करने के गौरव से दीप्तिमान होते होंगे, सुदामा के समान अक्षमता से मलिन नहीं...पर रुक्मिणी भी तो कोई विलक्षण राजकुमारी होंगी, जिसने चेदि के युवराज का तिरस्कार कर गोपाल कृष्ण का वरण किया।

रुक्मिणी ने बड़ी गरिमा से स्वयं को सन्तुलित किया। उन्होंने मुस्कराकर स्वागत किया, "पधारिये।"

सुदामा को लगा, वे सहज ही रुक्मिणी के साथ वार्तालाप नहीं कर पायेंगे। उन्हें अपना आत्मविश्वास संचित करना होगा। कहीं बैठ जायें वे। सुदामा की दृष्टि सारे कक्ष में घूम गयी-कौन-सा स्थान उपयुक्त होगा, उनके बैठने के लिए...

अपनी अभ्यस्त आयासहीन चाल से कृष्ण आगे बढ़े। सुदामा को बांह से पकड़ा और सबसे ऊंचे सिंहासन पर ला बैठाया।

"मैं...।" सुदामा ने कुछ प्रतिरोध करना चाहा।

"बैठो भी।" कृष्ण ने उन्हें कुछ कहने का अवसर नहीं दिया, "सुदामा बहुत दूर से आया है प्रिये!" वे रुक्मिणी से सम्बोधित हुए, "थका हुआ है। ज़रा गुनगुना पानी। पोंछने को स्वच्छ वस्त्र। कोई लेप...।"

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    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

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