कहानी संग्रह >> आजाद हिन्द फौज की कहानी आजाद हिन्द फौज की कहानीएस. ए. अय्यर
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आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....
25. भूलाभाई का अपूर्व वक्तव्य
इस समस्त कार्यवाई में सबसे अधिक गौरव भूलाभाई देसाई को मिला जिनके अपूर्व
तर्क दो दिन तक चले और जो संसार के किसी भाग में ऐसे अभियोगों में सम्मानित
स्थान प्राप्त करते रहेंगे।उनके ये शब्द समस्त भारतीय जनता के हृदयों में प्रतिध्वनित हो उठे जब उन्होंने कहा-“इस समय न्यायालय के समक्ष किसी परतंत्र जाति द्वारा अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करने का अधिकार कसौटी पर है।" भूलाभाई देसाई अंतर्राष्ट्रीय कानून का ही कथन नहीं कर रहे थे अपितु दैविक नियमों का भी उल्लेख करते हुए कह रहे थे कि संसार में सभी व्यक्ति स्वतंत्र जन्म लेते हैं और उन्हें स्वतंत्र रहने का अधिकार है।
भूलाभाई ने कहा कि अब इसमें कोई संदेह नहीं रहा है कि अस्थायी सरकार विधिवत बनायी गयी थी और उसको धुरी शक्तियों से मान्यता प्राप्त थी। उस सरकार के पास अपनी सेना थी जो नियमानुसार संगठित थी। उनके अपने विशेष बैज एवं संकेत चिह्न थे और उनका कार्य नियमानुकूल नियुक्त किए गये अधिकारियों द्वारा चलाया जाता था। इस सेना का संचालन आई.एन.ए. के विधान के अनुसार होता था।
इस सरकार को यह अधिकार था कि वह अपने उद्देश्य की प्राप्ति हेतु युद्ध की घोषणा करे। “सरकार ने अपने अधिकार के अंतर्गत सेना को युद्ध करने की आज्ञा दी। सेना ने सरकार के अधीन होने के कारण उसकी आज्ञाओं का पालन किया।"
भूलाभाई ने प्रतिपादित किया कि "अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार विदेशी शासन से मुक्ति पाने के लिए युद्ध करना पूर्णतया उचित था। यह न्याय की विडंबना ही होगी कि हम से कहा जाए कि भारतीयो! तुम जर्मनी, इटली जापान के विरुद्ध इंग्लैंड की स्वतंत्रता के लिए युद्ध करो और उस स्थिति को अवैध बताया जाए जब एक स्वतंत्र भारतीय राज्य इंग्लैंड सहित किसी भी देश से अपनी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए युद्ध करने की इच्छा करे। अत: हमारा विश्वास है कि इस युद्ध के औचित्य पर विचार करना आवश्यक नहीं है।"
भूलाभाई ने दृढ़ता से कहा कि दो राज्यों के बीच युद्ध के दौरान गोली चला कर शत्रु को मारने की घटना को हत्या करने की संज्ञा नहीं दी जा सकती। संक्षेप में भूलाभाई के दो दिन के तर्क उस स्मरणीय तथ्य का प्रतिपादन कर रहे थे जिसके लिए नेताजी और आई.एन.ए. भारत को स्वतंत्र करने हेतु युद्धरत हुए थे।
3 जनवरी 1946 को सैनिक न्यायालय ने तीनों अभियुक्तों को सम्राट के विरुद्ध युद्ध करने का दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन देश-निर्वासन, बरखास्तगी, एवं अवशेष वेतन और भत्ते न देने का दंड दिया। कमांडर-इन-चीफ ने आजीवन निर्वासन के दंड से तीनों अभियुक्तों को मुक्त कर दिया परंतु अवशेष वेतन एवं भत्ते न देने और बरखास्तगी के दंड को स्थिर रखा।
सभी तीनों अभियुक्तों को उसी दिन मुक्त कर दिया गया। देश हर्ष से उन्मत्त हो गया। लाल किले के अभियोग के नायक अपने इस उन्मत्त स्वागत से अभिभूत हो गए। जहां कहीं भी वे गए जन-समूह ने उन्हें घेर लिया।
इस प्रकार लाल किले में नाटक का पटाक्षेप हुआ परंतु भारत में अंग्रेजी राज्य का अंत करने की अंतिम कार्यवाही से पर्दा उठा। उसका पटाक्षेप लाल किले में चलाए गए अभियोग के 18 मास पश्चात् हुआ।
भारत में आई.एन.ए. के आगमन एवं लाल किले में चलाए गए अभियोग का प्रभाव देश में सशस्त्र सेना के भारतीय अधिकारियों एवं सैनिकों पर पड़ा। अंग्रेज अधिकारियों को अपने गुप्तचर विभाग द्वारा ज्ञात हुआ कि अब वे भारत में शासन करने के लिए भारतीय सेना पर और अधिक निर्भर नहीं रह सकते थे।
नौ सेना और वायु सेना के अंग्रेज अधिकारियों के विरुद्ध विद्रोह हुआ। इससे भारत में ब्रिटिश राज की नींव हिल गयी। लंदन में ब्रिटिश सरकार ने अविलंब भारत छोड़ने का निर्णय लिया। ब्रिटिश सरकार की ओर से एक मंत्रिमंडलीय नियोग (कैबिनेट मिशन) भारत भेजा गया जिसका कार्य भारत से बिटिश शासन हटाने की योजना तैयार करना था। लार्ड लुई माउंटबैटन, लार्ड वावेल के स्थान पर भारत के अंतिम वाइसराय नियुक्त हुए। उन्होंने योजना बनायी और उसके अनुसार भारत से ब्रिटिश शासकों को हटाने की क्रिया प्रारंभ की।
अगस्त 14/15, 1947 की मध्य रात्रि के समय उन्होंने यूनियन जैक को उतरते हुए एंव उसके स्थान पर राष्ट्रीय तिरंगे को फहरते देखा। वे कुछ समय तक स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल रहे और उनके पश्चात् चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य पदासीन हुए। जवाहरलाल नेहरू 15 अगस्त 1947 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने।
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