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आजाद हिन्द फौज की कहानी

एस. ए. अय्यर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :97
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4594
आईएसबीएन :81-237-0256-4

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आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....


26. आज़ाद हिंद फ़ौज की प्रतिज्ञा पूर्ति

16 अगस्त 1947 का दिन आई.एन.ए. के लिए अत्यंत भावुकतापूर्ण दिवस था। उस दिन स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले के प्राचीर पर तिरंगा फहराया। इसी दिन भारत की स्वतंत्र सरकार ने इस ऐतिहासिक अवसर पर एक चित्र इस शीर्षक के साथ जारी किया-“भारत की स्वतंत्रता से संबंधित एक प्रभावोत्पादक उत्सव में स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय झंडा दिल्ली के लाल किले के बुर्जी से युक्त प्राचीर पर 16 अगस्त को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने फहराया। इस समय आजाद हिंद फ़ौज के पुराने योद्धा अपनी अपूर्ण प्रतिज्ञा को पूर्ण होते हुए देखने के लिए मौजूद थे।" आई.एन.ए. की चार वर्ष पुरानी प्रतिज्ञा दिल्ली में वाइसराय भवन पर तिरंगा फहराने की और लाल किले में विजय परेड करने की थी। पूर्वी एशिया की जनता के लिए जिसने इस प्रतिज्ञा को नेताजी के मुख से सुना था यह घटना एक भावनात्मक स्वप्न के समान थी। पुराने क्रांतिकारी बाबा अमरसिंह और बाबा उसमान खां का भी यही लक्ष्य था। हर कीमत पर इसकी उपलब्धि आई.एन.ए. का सैनिक उद्देश्य था। यद्यपि युद्धभूमि पर आई.एन.ए. पराजित हो गयी थी परंतु अब भी वह उसी युद्ध की पावन वेशभूषा में थी। आई.एन.ए. की एक टुकड़ी ने लाल किले पर आयोजित उत्सव में भाग लिया।

लाल किले के मुकदमे के पश्चात् जब उत्तेजना और वीरपूजा समाप्त हो गयी तो स्वतंत्र भारत की सरकार संसार के अन्य देशों के बीच अपने स्वतंत्र राष्ट्र की नयी भूमिका तैयार करने में लग गयी। तब आज़ाद हिंद फौज ने अपने आपको एकाकी बीहड़ बन में पाया। जब आई.एन.ए. की प्रशंसा की लहर देश में व्याप्त थी तो सरदार बल्लभभाई पटेल ने कलकत्ता की एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि आई.एन.ए. स्वतंत्र भारत की सेना की केंद्रीय-शक्ति होगी परंतु ऐसा नहीं हुआ। आई.एन.ए. संबंधी शोध एवं कल्याण समिति, जिसके अध्यक्ष सरदार पटेल थे, एवं उसके अवैतनिक महासचिव श्री प्रकाश ने उसके सैनिकों की नियुक्ति का अत्यधिक प्रयास किया। परंतु फिर भी आई.एन.ए. का विलय स्वतंत्र भारत की सेना में न हो सका। उसके अधिकारियों एवं सैनिकों को नए सिरे से प्रार्थना पत्र भेजने के लिए कहा गया। कारण यह बताया गया कि उनके सीधे विलय से सशस्त्र सेना के गठन संबंधी रूप के अस्तव्यस्त हो जाने की वैधानिक कठिनाई उत्पन्न होती थी।

युद्ध समापन के बाद जब अंग्रेज आई.एन.ए. के सैनिकों को पूर्वी एशिया से बंदी बनाकर भारत लाए थे तो उन्हें तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया था "श्वेत, भूरे और काले।" जो आई.एन.ए. में सम्मिलित नहीं हुए 'श्वेत' थे। जिन्होंने 'भ्रमित' होकर आई.एन.ए. को अपनाया, वे 'भूरे' थे और जो पश्चाताप न करने पर दृढ़ थे और कहते थे कि यदि फिर अवसर मिले तो वे अंग्रेजों के विरुद्ध पुनः युद्ध करेंगे उन्हें 'काला' कहा गया और उन्हें भारतीय सेना से बरखास्त कर दिया गया। उनको अवशेष वेतन और भत्ता प्राप्त करने से वंचित कर दिया गया। वास्तव में 'काले' ही बहुसंख्या में थे और अंग्रेजों ने इन देशभक्तों से जिन्होंने उनके भारत में राज्य की समाप्ति की, बदला लिया।

आई.एन.ए. ने अनुभव किया कि इस प्रकार उसकी देशभक्ति के लिए दंडित किया गया था। स्वतंत्र भारत की केंद्रीय एवं राज्य सरकारों ने आई.एन.ए. के सैनिकों और अधिकारियों को विभिन्न कार्य दिये। कुछ को कनिष्ठ मंत्री एवं कुछ को राजदूत नियुक्त किया गया। कुछ सैनिक प्रादेशिक सशस्त्र पुलिस में सम्मिलित कर लिए गए। परंतु आई.एन.ए. केवल सेना के लिए उपयुक्त थी उसमें ही उसे समाहित नहीं किया गया।

आई.एन.ए. की बंबई की एक रैली में 1949 में भारत सरकार से आग्रह किया गया कि सरकार को उन वीरों के परिवारों और आश्रितों के प्रति अपना पुनीत कर्तव्य स्वीकार करना चाहिए जिन्होंने अपना जीवन स्वतंत्रता के युद्ध में बलिदान कर दिया गया था। सरकार को घायलों एवं अपंगों के प्रति भी अपना कर्तव्य पूर्ण करना चाहिए। रैली में सरकार से यह भी कहा गया कि आई.एन.ए. के प्रत्येक स्तर के सैनिक को भारत की सशस्त्र सेना में उपयुक्त पद पर पुनः नियुक्त करके भारत की सेवा करने का अवसर दिया जाए और उनके न्याय युक्त अवशेष वेतन आदि का भी भुगतान किया जाए।

दो वर्ष पश्चात अप्रैल 1951 में अखिल भारतीय आई.एन.ए. की शोध एवं सहायता संबंधी समिति तथा नयी दिल्ली में सरकार के सचिवालय में आई.एन.ए. की सलाहकार समिति की संयुक्त बैठक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री को आई.एन.ए. के प्रतिनिधियों ने एक स्मरण पत्र दिया। यह स्मरण पत्र आई.एन.ए. के पंद्रह हजार अधिकारियों और सैनिकों के संबंध में था जो भारत में पूर्वी एशिया से 1946 के प्रथम चतुर्थांश में ही आ गये थे। उनका वेतन और भत्ता 1942 से जब सिंगापुर में अंग्रेजों की पराजय हुई थी तत्कालीन अंग्रेज सरकार द्वारा अदा नहीं किया गया था। तब से अब तक सात हजार व्यक्तियों को कुछ रोजगार मिल गया था। अवशेष आठ हजार व्यक्ति निस्सहाय एवं दयनीय दशा में थे। यदि स्वतंत्र भारत की सेना में संपूर्ण आई.एन.ए. को विलय करने में कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां थी तो वरिष्ठ एवं कनिष्ठ को छोड़कर जिनके कारण कठिनाई हो रही थी पांच हजार जवानों को सहानुभूति की दृष्टि से उनके मूल स्थान पर उन्हें पुन:स्थापित कर दिया जाये। यदि यह भी संभव ने हो तो आई.एन.ए. को सीमा सुरक्षा पुलिस, सशस्त्र पुलिस, सामान्य पुलिस, गुप्तचर विभाग, सुरक्षा दल, चुंगी एवं आबकारी विभाग में नियुक्त किया जाए।

इस सम्मेलन में खिन्नता एवं प्रसन्नता का कुछ मिश्रित वातावरण आजाद हिंद फौज के भूतपूर्व मंत्री और नेताजी के छह विश्वस्त साथियों में से एक कर्नल गुलजारा सिंह की उपस्थिति से बना। कर्नल गुलजारा सिंह नेताजी के साथ उनकी अंतिम ज्ञात यात्रा और 'अज्ञात लक्ष्य में अभियान' पर सैगोन तक गए थे। भारत पहुंचने पर गुलजारा सिंह ने निश्चय किया कि वे भारतीय सेना में सैनिक जीवन ही व्यतीत करेंगे। अत: उन्होंने नए सिरे से लेफ्टिनेंट पद के लिये प्रार्थना पत्र भेजा और उनकी नियुक्ति हो गयी। स्वतंत्र भारत की सेना के लेफ्टिनेंट के रूप में उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ इस सम्मेलन में भाग लिया।

सम्मेलन के दो दिन पश्चात् पंजाबराव देशमुख, एच.वी. कामथ, सोनाबेन, एवं अन्य लोकसभा के सदस्यों ने मेजर जनरल जे.के. भोंसले एवं अन्य लोगों के सम्मान में, जिन्होंने प्रधानमंत्री के साथ सम्मेलन में भाग लिया था, नयी दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में एक भोज का आयोजन किया। इस भोज में भारत सरकार के मंत्री रफी अहमद किदवई, एन.वी. गाडगिल, सी.डी. देशमुख, हरे कृष्ण महताब और आर.आर. दिवाकर सहित साठ व्यक्ति आमंत्रित थे। अपने अभिनंदन का उत्तर देते हुए जनरल भोंसले ने कहा कि यह नेताजी सुभाषचंद्र बोस के गतिशील नेतृत्व का ही प्रभाव था कि पूर्वी एशिया स्थित तीस लाख भारतीयों ने अपना सर्वस्व मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए समर्पित किया। आई.एन.ए. की समस्या पहले पांच वर्ष तक अधर में लटकी रही। उन्होंने और उनके साथियों ने यह महसूस किया कि प्रधानमंत्री के आई.एन.ए. की सहायता समिति के अध्यक्ष बन जाने से आधी समस्या हल हो गयी और अर्द्ध समस्या का निवारण उपस्थित जनता, प्रेस और अन्य भारतीयों के सहयोग से हल होगा। उन्होंने जोर देकर बताया कि आई.एन.ए. के सैनिकों की दशा अति दयनीय है।

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