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आजाद हिन्द फौज की कहानी

एस. ए. अय्यर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :97
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4594
आईएसबीएन :81-237-0256-4

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आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....


27. आज़ाद हिंद फ़ौज के प्रति न्याय

आई.एन.ए. के क्रियाशील एवं समर्पित अधिकारियों ने दिल्ली में आज़ाद हिंद फ़ौज एसोसिएशन का संगठन किया, जिसका एकमात्र उद्देश्य नेताजी की स्मृति और उनके आदर्शों को जीवित रखना था। साथ ही एसोसिएशन को अंग्रेजों के समय में आई.एन.ए. पर लगे अर्थहीन कलंक को मिटाकर उन्हें उचित न्याय दिलाना एंव उनके अवशेष वेतन और भत्तों का भुगतान कराने का प्रयास भी करना था। मई 1967 में इस एसोसिएशन ने लोक सभा सदस्यों के नाम एक पुस्तिका के रूप में अपील जारी की जिसका शीर्षक था- 'आजाद हिंद फ़ौज की वर्तमान स्थिति के संबंध में तथ्य'। इस पुस्तिका में आजाद हिंद फौज एसोसिएशन की ओर से वे तथ्य और आंकड़े दिए गए थे जिनसे यह पता चलता था कि 1947 के बाद से स्वतंत्र भारत की सरकार के हाथों आई.एन.ए. की क्या स्थिति रही और मुक्ति सेना के भूतपूर्व सदस्यों के प्रति पूरा न्याय उपलब्ध कराने के लिए अभी क्या करना शेष है।

एसोसिएशन के अनुसार आई.एन.ए. को अब तक जो लाभ हए वे थे-अप्रैल 1948 में स्वतंत्र भारत की सरकार ने घोषणा की कि आई.एन.ए. के सदस्यों के विरुद्ध कोई कलंक नहीं है। चार सौ से लेकर आठ सौ रुपये तक की संकलित धनराशि एवं कुछ अन्य धनराशि अनुदान के रूप में दी गयी।

आई.एन.ए. के अधिकारियों को 1950 में नए सिरे से कमीशन देकर पुनः नियुक्त किया गया। अन्य सैनिकों को कहा गया कि वे नीचे के पद पर भर्ती हों।

सरकार ने 1961 में आई.एन.ए. आंदोलन को राष्ट्रीय आंदोलन घोषित किया और उसके सब सदस्यों को राजनीतिक पीड़ित माना।

आर्थिक सहायता के रूप में 1963 में तीस लाख रुपये की राशि स्वीकृत दी गयी।

परंतु सबसे महत्वपूर्ण मांग ब्रिटिश सरकार द्वारा आई.एन.ए. के सदस्यों के दंड स्वरूप रोके गए वेतन और भत्ते एवं संपूर्ण जीवन में कष्ट द्वारा अर्जित बचत संबंधी थी जिसे प्राप्त करने से सरकार ने उन्हें वंचित कर दिया था। यह जब्त की गयी धनराशि 1946 में दो करोड़ रुपये थी और 1967 तक चक्रवृद्धि ब्याज लगाकर कम-से-कम पांच करोड़ रुपये हो गयी थी। पांच करोड़ के स्थान पर सरकार ने 68 लाख रुपये वितरित किया था।

आजाद हिंद फौज एसोसिएशन ने अपने अवशेष वेतन और भत्तों को प्राप्त करने के लिए आंदोलन तीव्र किया और वे सरकारी अधिकारियों से अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए कई बार मिले।

अंत में दिल्ली में उपस्थित आई.एन.ए. के कुछ अधिकारियों के सोलह वर्ष तक सतत प्रयास करने से फल प्राप्त हुआ। इस आंदोलन को चलाने वालों में अथक परिश्रम करने वाले एसोसिएशन के महासचिव कप्तान एल.सी. तलवार थे।

आजाद हिंद फौज एसोसियेशन ने 28 नवंबर 1970 को आई.एन.ए. के सदस्यों के नाम एक परिपत्र लिखा जिसके द्वारा उन्हें बताया कि सरकार ने अंत में अवशेष वेतन एवं भत्तों के भुगतान का निर्णय ले लिया था। यह निर्णय आई.एन.ए. के लिए संतोषप्रद था यद्यपि इसमें विभिन्न स्तर के अधिकारियों और सैनिकों को प्रभावित करने वाली पेचीदा परिकलन संबंधी अनेक कठिनाइयां सन्निहित थीं। एसोसिएशन ने यह भी दावा किया कि यदि 1954 से आंदोलन न किया गया होता तो जब्त किए अवशेष वेतन और भत्ते देने की स्वीकृति प्राप्त नहीं होती और यह धन सदैव के लिए समाप्त हो जाता।

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