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आजाद हिन्द फौज की कहानी

एस. ए. अय्यर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :97
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4594
आईएसबीएन :81-237-0256-4

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आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....


28. क्या नेताजी जीवित हैं ?

पूर्वी एशिया से 1945 में नेताजी का अदृश्य हो जाना अभी तक भारत में विवाद का प्रश्न बना हुआ है।

अप्रैल 1956 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने तीन व्यक्तियों की एक सरकारी समिति बनायी जिसके सदस्य मेजर जनरल शाहनवाज खां, सुभाष चंद्र बोस के अग्रज सुरेश चंद्र बोस और अंडमान निकोबार द्वीपों के आयुक्त एस.एन. मर्यत्रा आई.सी.एस. थे। इस समिति का कार्य उन परिस्थितियों को ज्ञात करना था जिनमें 16 अगस्त 1945 के लगभग नेताजी ने बैंकाक छोड़ा और वायुयान के दुर्घटना ग्रस्त हो जाने के कारण उनकी तथाकथित मृत्यु तथा इस घटना से संबंधित अन्य जानकारी प्राप्त करके सरकार को रिपोर्ट देना था।

समिति ने दिल्ली, कलकत्ता, बैंकाक, सैगोन और टोकियो में 67 साक्षियों से पूछताछ की। जनरल शाहनवाज और एस.एन. मयैत्रा इस निर्णय पर पहुंचे कि “वायुयान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हुई और रेनकोजी मंदिर (टोकियो) में रखे हुए अस्थि अवशेष उन्हीं के अस्थि अवशेष हैं।" सुरेश चंद्र बोस ने अपने दोनों साथियों से खुले आम असहमति प्रकट की और कहा कि समिति द्वारा एकत्रित साक्ष्य से "उनके द्वारा लिया गया निर्णय प्रमाणित नहीं होता।" सुरेश चंद्र बोस ही नहीं उनके परिवार के अन्य सदस्यों को भी आज तक यह विश्वास नहीं हुआ कि नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को फारमोसा में वायुयान दुर्घटना में हुई और टोकियों में रखे हुए अस्थि अवशेष नेताजी के ही अस्थि अवशेष हैं। नेताजी के परिवार की भावनाओं का आदर करते हुए भारत सरकार ने शाहनवाज और मयैत्रा की इस सिफारिश को नहीं माना कि “अस्थि अवशेष समुचित सम्मान सहित गरत लाए जाएं और किसी उपयुक्त स्थान पर उनका स्मारक बनाया जाए।"

ग्यारह वर्ष पश्चात् दिसंबर 1967 में लोक सभा के 350 सदस्यों ने भारत के राष्ट्रपति को एक स्मरण-पत्र दिया जिसमें अन्य बातों के अतिरिक्त इस बात पर भी जोर दिया गया कि "जापान तथा तैवान (जहां वायुयान दुर्घटना ग्रस्त हुआ) की सरकारों के सहयोग से नेताजी के संबंध में पुनः तथ्यों का पता लगाया जाए। नेताजी
के विषय में जो रहस्यमय विचार बने हुए हैं उनके निवारण का एकमात्र उपाय पुन: तथ्यों को ज्ञात करना ही है।"

मई 1968 में राष्ट्रपति भवन से नेताजी से संबंधित राष्ट्रीय समिति के संयोजक प्रो. समर गुहा, संसद सदस्य के नाम एक संदेश भेजा गया। अगले माह प्रो. गुहा ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि नेताजी के संबंध में रहस्य निवारण करने के लिए पुन: जांच करने की आवश्यकता है और यह राष्ट्रीय उतरदायित्व है जिसे अनिश्चित काल तक अनिर्णीत नहीं छोड़ा जा सकता।

आजाद हिंद फौज एसोसियेएशन ने सितंबर 1968 में एक मुद्रित पत्रिका प्रसारित की जिसमें राष्ट्रपति के नाम लोक सभा के सदस्यों के स्मरण-पत्र को उद्धृत किया गया और तत्संबंधी अन्य पत्र व्यवहार का उल्लेख भी किया गया। इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने नेताजी के अदृश्य होने संबंधी तथ्यों की पुन: जांच की मांग को दोहराया।

भारत सरकार ने 11 जुलाई 1970 को एक विज्ञप्ति द्वारा "श्री जी.डी. खोसला, भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश पंजाब हाई कोर्ट की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग नियुक्त किया।

इस विज्ञप्ति में कहा गया था कि “आयोग उन सभी तथ्यों की जांच करेगा जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 1945 में अदृश्य होने से संबंधित हैं और तत्पश्चात् तत्संबंधी घटी घटनाओं की जांच करके केंद्रीय सरकार को रिपोर्ट देगा।"

आयोग ने दिल्ली, कलकता, बंबई और जापान में अनेक ही साक्षियों की गवाही अंकित की।

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