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आजाद हिन्द फौज की कहानी

एस. ए. अय्यर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :97
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4594
आईएसबीएन :81-237-0256-4

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आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....


30. आज़ाद हिंद फ़ौज अमर है

आई.एन.ए. आज भी लाखों भारतीयों के हृदय में अमर है। 1946 से संपूर्ण देश में नेताजी का जन्म दिवस 23 जनवरी को मनाया जाता है। यह स्वाभाविक ही है कि उनकी जन्म-भूमि बंगाल प्रदेश उनके जन्म दिवस को अत्यंत उत्साहवर्धक तैयारियों के साथ मनाने में अग्रणी है। 23 जनवरी को बंगाल में कितने ही वर्षों से अवकाश रहता है और जनता नेताजी की कांसे की मूर्ति पर फूलमाला अर्पित करने के लिए कलकत्ता में एकत्र होती है। समस्त देश में 1943 से 1945 तक हुए स्वतंत्रता युद्ध में आई.एन.ए. के बलिदान एवं त्याग की स्मृति में सभाएं होती हैं।

दिल्ली आज़ाद हिंद फौज एसोसिएशन, नेताजी और आई.एन.ए. की स्मृति को जीवित रखने के लिए नेताजी के जन्म दिन को प्रतिवर्ष अधिक विस्तृत तैयारी एवं प्रभावपूर्ण ढंग से मनाती है। भारत की राजधानी कम-से-कम प्रतिवर्ष एक बार मुक्ति सेना और उस व्यक्ति को जिसका युद्ध घोष “चलो दिल्ली" था और जिसका लक्ष्य वाइसराय भवन पर तिरंगा फहराना एवं लालकिले में विजय परेड करना था, को स्मरण कर लेती है। व्यक्ति जन्म लेते हैं और मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं परंतु इतिहास अमर है। प्रथम जवाहरलाल नेहरू, उनके बाद लालबहादुर शास्त्री और फिर इंदिरा गांधी ने क्रमश: स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री के रूप में लालकिले के प्राचीर पर प्रतिवर्ष 15 अगस्त को प्रात:काल नेताजी और आई.एन.ए. सहित भारत की स्वतंत्रता के लिए लाखों नर-नारियों के बलिदान का जनता को स्मरण दिलाने के उद्देश्य से झंडा फहराया है।

दिल्ली आज़ाद हिंद फ़ौज ऐसोसिएशन 23 जनवरी को सवेरे से शाम तक राजधानी के नागरिकों को एकत्र करके उन्हें स्मरण दिलाती है कि नेताजी और आई.एन.ए. ने किस प्रकार भारत के राष्ट्रीय संघर्ष के अंधकारपूर्ण दिनों में स्वतंत्रता की ज्योति को प्रज्वलित रखा।

नेताजी के जन्म दिवस उत्सव को मनाने में आकाशवाणी और समाचार प्रसारण के अन्य माध्यम भी अपना योगदान देते हैं।
कलकत्ता में लाला लाजपतराय रोड पर स्थित नेताजी भवन, जो पहले उनके

परिवार के पूर्वजों का निवास-स्थान था, नेताजी के आदर्शों को प्रसारित करने के लिए राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया है। स्वयं उच्च कोटि के राष्ट्रीय नेता और नेताजी के लिए प्रेरणा के स्रोत उनके अग्रज शरत चंद्र बोस ने बीस वर्ष पूर्व इस भवन की नींव रखी थी। यह भवन अब राष्ट्रीय मंदिर बन गया है। इसमें नेताजी शोध संस्थान और नेताजी संग्रहालय नामक संस्थाएं चल रही हैं। शोध संस्थान के सामने राष्ट्र सेवा की एक उच्चकोटि की योजना है परन्तु धनाभाव के कारण उनके कार्यान्वयन में कठिनाई आ रही है। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी एवं अन्य केन्द्रीय मंत्रियों ने इस संग्रहालय को देखकर इसकी व्यवस्था की प्रशंसा की है। नेताजी के भतीजे डा. शिशिर कुमार बोस जिन्होंने 17 जनवरी 1941 की रात्रि में उनके कलकत्ता स्थित घर से पलायन करने में सहायता दी थी, इस भवन के कार्य की व्यवस्था उत्साह सहित दिन-रात परिश्रम से करते हैं। उनका लक्ष्य भवन को भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के लिए देशभक्ति की शिक्षा का राष्ट्रीय केंद्र बनाना है। अब भी नेताजी शोध संस्थान में संसार के बहुत से भागों से विद्वान आकर नेताजी के जीवन एवं उनकी उपलब्धियों के अनेक रूपों सहित आई.एन.ए. के भारत के स्वतंत्रता संघर्ष पर प्रभाव का अध्ययन करते हैं।

जब 19 मार्च 1967 में जापान के ले. जनरल फ्यूजी वारा ने एक बहुत बड़े जन-समूह की उपस्थिति में नेताजी संग्रहालय को वह तलवार भेंट की जो उन्हें 1943 में पूर्व एशिया में जापानियों से भेंट में प्राप्त हुई थी तो भवन में एक ऐतिहासिक एवं पावन वातावरण उत्पन्न हो गया। जनरल फ्यूजी वारा 1942 में मलाया में उत्तरी जापानी सेना में मेजर थे और उन्होंने इस वर्ष जनरल मोहन सिंह को प्रथम आजाद हिंद फौज के निर्माण करने में सहायता दी थी। लगभग तीस वर्ष पूर्व उस दिन से फ्यूजी वारा निरंतर भारत की स्वतंत्रता, उसकी प्रसन्नता एवं समृद्धि में स्थायी तथा सक्रिय रुचि लेते रहे हैं। अन्य राष्ट्रों के उत्थान में ऐसी रुचि एक अनुपम उदाहरण हैं।

शरत चंद्र बोस के पुत्र और नेताजी के भतीजे अमिय नाथ बोस ने आज़ाद हिंद संघ नामक एक राष्ट्रीय पार्टी नेताजी के आदर्शों का प्रसार करने के उद्देश्य से 1968 में बनायी।

नेताजी संग्रहालय देखने के लिए सब प्रदेशों से समाज के प्रत्येक वर्ग के अनेक व्यक्ति सतत आते रहते हैं। संस्थान ने नेताजी और आई.एन.ए. के लगभग दो सौ चित्रों को बड़ा कराकर बंबई, दिल्ली, अंडमान में प्रदर्शनियों का आयोजन करके प्रदर्शित किया। सब स्थानों पर अनेक व्यक्ति बड़ी संख्या में इन प्रदर्शनियों को देखने आए।

दिल्ली में नेताजी का उपयुक्त स्मारक 'नेताजी भवन' बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है। उनके 75वें जन्म दिवस पर प्रकाशित स्मारिका 'नेताजी और आज का भारत' के संपादक सुर्दशन के. सावरा कहते हैं कि इस स्मारक का कार्य "युवकों को भविष्य के लिए नेतृत्व की शिक्षा देना और देश के लिए ऐसे कर्तव्यनिष्ठ नागरिक उत्पन्न करना होगा जो सेवा भाव एवं त्याग के उच्च आदर्शों से युक्त हों और नेताजी के कार्य को आगे बढ़ा सकें।"

इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा निर्मित एक अखिल भारतीय आई.एन.ए. समिति दिल्ली मुख्यालय पर कार्यरत है। इस समिति के अध्यक्ष सदैव भारत के प्रधान मंत्री रहे हैं। कर्नल जगदेव सिंह (आई.एन.ए.) इसके महासचिव हैं।

वर्तमान समय में राष्ट्रीय महत्व की एक प्रमुख घटना 21 अक्तूबर 1968 को आज़ाद हिंद की अस्थायी सरकार की पच्चीसवीं वर्षगांठ मनाने की हुई। यह अस्थायी सरकार नेताजी ने सिंगापुर में 21 अक्तूबर 1943 में बनायी थी।

मुख्य उत्सव मणिपुर के दक्षिण में 27 मील दूर मोरांग में मनाया गया क्योंकि यहीं पर 14 अप्रैल 1944 को आई.एन.ए. के कर्नल एस.ए. मलिक ने भारतभूमि पर प्रथम बार राष्ट्रीय तिरंगा लहराकर इस स्थान को पवित्र किया था। कर्नल मलिक ने ढाई मास तक आज़ाद हिंद सरकार की ओर से मोरांग को मुख्यालय बनाकर इस प्रदेश पर शासन किया था। प्रथम 'राष्ट्रीय मंदिर' मोरांग आई.एन.ए. के शहीदों के स्मारक का रूप लेता जा रहा है। तत्कालीन राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष उ.न. ढेबर ने इस स्मारक की नींव 1955 में रखी थी। जवाहरलाल नेहरू और लालबहादुर शास्त्री के सुझाव से स्मारक पर पांच से सात लाख के बीच रु. व्यय होने थे। अत: स्मारक संबंधी पूर्व योजना परिवर्तित कर दी गयी। तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और मैसूर के तत्कालीन मुख्यमंत्री निजलिंगप्पा ने एक-एक लाख रुपये देना स्वीकार किया था। तत्कालीन मणिपुर के मुख्यमंत्री, आई.एन.ए. के कोरेंग सिंह, जो इस स्मारक के अध्यक्ष एवं कोषाध्यक्ष भी थे, एवं शीलभद्र एम.पी. जो स्मारक के उपाध्यक्ष थे, के अनुसार, महाराष्ट्र, आंध्र, असम, जम्मू और कश्मीर, उड़ीसा, त्रिपुरा और गुजरात के मुख्यमंत्रियों ने भी धन की स्वीकृति दी थी।

मोरांग में 21 अक्तूबर 1968 को अस्थायी सरकार के निर्माण की रजत जयंती समारोह में सम्मिलित होने के लिए केन्द्रीय सरकार के छह मंत्री वाई.बी. चव्हाण, डा. त्रिगुन सेन. डा. रामसुभग सिंह, के.के. शाह, श्रीमती फूल रेनु गुहा और प्रो. शेरसिंह गए थे।

प्रथम आई.एन.ए. के प्रसिद्ध संस्थापक जनरल मोहनसिंह को इस अवसर पर विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। मनीलाल दोशी ने, जो अस्थायी सरकार के सदस्य थे और 21 अक्तूबर 1943 को सिंगापुर में नेताजी की ऐतिहासिक घोषणा के समय वहां उपस्थित थे, 21 अक्तूबर 1968 को मोरांग उत्सव में घोषणा पढ़ी। वे अपने आपको इस बात पर अत्यंत भाग्यशाली एवं गौरवपूर्ण अनुभव कर रहे थे कि उन्हें 25 वर्ष पूर्व की महत्वपूर्ण घोषणा उस दिन पढ़ने के लिए बुलाया गया था।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सितंबर 1969 को मोरांग स्मारक के संग्रहालय विभाग का उद्घाटन किया।

भारतीय मुक्ति संघर्ष और नेताजी एवं आई.एन.ए. के इस मुक्ति संघर्ष में योगदान की स्मृति को जाग्रत रखने के लिए मोरांग में नेताजी की कांसे की मूर्ति, एक बड़ा हाल, पुस्तकालय एवं संग्रहालय स्थापित करने की वृहद योजना है।

आज़ाद हिंज फ़ौज एसोसिएशन ने रजत जयंती समारोह राष्ट्रीय स्तर पर मनाने के लिए एक महत्वपूर्ण स्मारिका निकाली जिसमें सब पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं के प्रेरक संदेश और नेताजी एवं आई.एन.ए. संबंधी अनेक रोचक लेख सम्मिलित किए गए थे।

उनके कुछ मुख्य अंश इस प्रकार हैं:-

"आज़ाद हिंद सरकार द्वारा अंडमान में भारत भूमि पर तिरंगा लहराने का कार्य उस घटना का प्रतीकात्मक पूर्व रूप था जो 15 अगस्त 1947 को दिल्ली के लाल किले में तिरंगा लहराते समय घटी।"-डा. जाकिर हुसेन, राष्ट्रपति।

सुभाष चंद्र बोस के भारत की स्वतंत्रता में योगदान को सभी अच्छी प्रकार जानते है। वह हमारे इतिहास का एक उतम भाग है।"- डा. राधाकृष्णन, भूतपूर्व उप राष्टपति।

"नवीन भारत के निर्माताओं में सुभाषचंद्र बोस का प्रमुख स्थान है, उनकी मित्रता और सान्निध्य प्राप्त करने का मुझे सौभाग्य प्राप्त है।"-वी.वी. गिरी, उप-राष्ट्रपति।

"नेताजी सुभाषचंद्र बोस क्रियाशीलता एवं देशभक्ति के जाज्वल्यमान प्रतीक हैं। उनकी जीवनी और संदेश आनेवाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत रहेंगे। 25 वर्ष पूर्व उन्होंने आज़ाद हिंद सरकार बनायी और उसका नेतृत्व किया। यह हमारे इतिहास की एक प्रमुख घटना है।" -श्रीमती इंदिरा गांधी, भूतपूर्व प्रधान मंत्री।

"मैं इस अवसर पर आई.एन.ए. के वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।"-ई.एम.एस. नंबूद्रीपाद, मुख्य मंत्री, केरल।

"इस अवसर पर मैं समस्त वृद्ध, युवक, पुरुष, स्त्री, लड़के, लड़कियों से एक विशेष निवेदन करता हूं कि उन्हें भारत के इस महान पुत्र का अनुसरण करके मातृभूमि
की सेवा के प्रति अपना कर्तव्य समझना चाहिए। हम इस देश के सच्चे, देशभक्त पुत्र और पुत्री बनें जिससे कि कष्टों द्वारा प्राप्त की हुई स्वतंत्रता स्थिर रहे और हम जनतात्रिक ढंग से देश में स्वतंत्र नागरिक के रूप में रह सकें।"- जनरल के.एक करियप्पा, भूतपूर्व कमांडर-इन चीफ, भारतीय सेना।

आई.एन.ए. के 1945 में भारत आगमन के तुरंत बाद महात्मा गांधी ने कहा, "यद्यपि आई.एन.ए. इस समय अपने लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रही परंतु फिर भी उनकी अनेक उपलब्धियां है जिनके लिए वे गर्व कर सकते हैं उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि उनके एक स्थान पर एक झंडे के नीचे एकत्र होने की है। भारत की सभी जातियों एवं धर्मों के व्यक्ति धार्मिक एवं जातीय भेदभाव भूलकर एक हो गये और उनमें संगठित होने की भावना जाग्रत हुई, यह एक ऐसा उदारण है जिसका अनुसरण हम सबको करना चाहिए।"

दिल्ली के परेड ग्राउंड में 23 जनवरी 1970 को नेताजी के 74वें जन्म दिवस उत्सव का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति वी.वी. गिरि ने अपने भाषण में कहा, “मुझे नेताजी के मित्र होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वे एक बहुत अच्छे साथी एवं स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे। उनके लिए सर्वोत्तम श्रद्धांजलि पारस्परिक एकता और देश को शक्तिशाली बनाकर राष्ट्रों में देश का उचित स्थान प्राप्त कराना है।"

आई.एन.ए. के कुछ अविस्मरणीय दृश्य तमिलनाडु में 11,12 अक्तूबर 1969 को छोटे स्तर पर देखने को मिले।

तमिलनाडु की आई.एन.ए. लीग द्वारा आयोजित मदुराई की एकरैली में आई.एन.ए. के दो हजार भूतपूर्व सैनिक उपस्थित हुए जिनमें सौ झांसी की रानी रेजिमेंट की भूतपूर्व सदस्यायें भी थीं। उन्होंने मार्च पास्ट किया। जिसकी सलामी लाल किले के मैदान में प्रसिद्ध सैनानी जी.एस. ढिल्लन ने ली। इन सैनिकों में लगभग पंद्रह सैनिक उन्हीं वस्त्रों को पहने थे जो उन्होंने 25 वर्ष पूर्व भारत के स्वतंत्रता युद्ध में पहने थे। इन वस्त्रों को वे 25 वर्ष से संजोए हुए रखे थे। 25 वर्ष पश्चात् यह पुनर्मिलन अनुपम था। रैली में दो दिन तक भावात्मक हर्ष का वातावरण उपस्थित रहा।

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