मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
गुफा में हमने कई अलग-अलग कमरे बनाए। बेकार पत्थरों से मेज-कुर्सियां तथा सजावट योग्य मूर्तियां गढ़ी। सभी चीजों को व्यवस्थित किया। कमरों की व्यवस्था इस तरह रखी कि एक ओर रहने के कमरे और दूसरी ओर भण्डारघर तथा जानवरों वाले कमरे थे। तीसरे कोने पर रसोईघर बनाया गया। रसोईघर से धुआं बाहर निकालने का हमने खास प्रबंध किया। हमारे पास, सामान में, तीन खिड़कियां भी थीं। उनमें से एक-एक तो हमने सोनेवाले कमरों में लगा दीं और एक को रसोईघर में लगा दिया ताकि रोशनी और साफ हवा मिल सके।
इन सब कामों में कई दिन लग गए। लेकिन हम निराश नहीं हुए। हम सब रोज नये उत्साह के साथ जुट जाते और काम का एक हिस्सा निबटा डालते। और इस तरह हमने एक दिन 'घोंसलें' का ज्यादातर सामान अपने इस नये घर में इकट्ठा कर लिया।
सुरक्षा-तट पर लम्बे अर्से तक रहने के दौरान हमने दो और नई खोजें कर ली थीं। हमने देखा था कि आये दिन बड़े-बड़े समुद्री कछुए पानी से निकलकर किनारे की बालू पर लेट जाते हैं और काफी देर तक पड़े रहते हैं। हम अपने भोजन में कुछओं के मांस का उपयोग कर सकते थे। सुन रखा था कि यह बड़ा ही स्वादिष्ट होता है। एक दिन हम एक कछुए को पकड़ने में सफल हो गए। घर लाकर उसका मांस पकवाया गया। जब खाने बैठे तो सभी 'वाह-वाह' कर उठे। पत्नी बोली, ''क्या ही अच्छा हो कि हमें रोज एक कछुआ मिलता रहे !'' लेकिन रोज तो कछुए आते नहीं थे। इसलिए हमने यह तय किया कि हमें कोई ऐसा उपाय करना चाहिए कि एक ही बार में बहुत सारे कछुए पकड़े जा सके। और उन्हें काफी दिनों तक जिन्दा रखा जा सके।
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