मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
मैं अभी सोच ही रहा था कि अर्नेस्ट बोला, ''पापा, आपको याद होगा कि हमें टूटे हुए जहाज पर से अपने सामान में मछली का एक बहुत मजूबूत जाल भी मिला था। शायद उससे काम बन सके।''
अर्नेस्ट अभी अपनी बात खतम भी नहीं कर पाया था कि फ्रिट्ज उछल पड़ा। चेहरे पर खुशी और प्रसन्नता के विचित्र-से भाव लाकर वह बोला, ''बस-बस, बात बन गई। हम उसी से एक ही बार में बहुत सारे कछुए पकड़ सकते हैं।''
''भला, कैसे?'' मैंने पूछा।
''बस, पापा, आप पूछिए कुछ नहीं। जो मैं कहूं उसे आप सब लोग करते जाइए।''
मैं चुप हो गया। कुछ ही देर मे अर्नेस्ट और फ्रिट्ज मछली का जाल ले आए। फ्रिट्ज अपने साथ लकड़ी का एक मोटा डंडा और हथौड़ा भी लाया। डंडे का एक सिरा नुकीला था और उसे जमीन में गाड़ा जा सकता था। कछुए उस समय भी काफी तादाद में बालू के ऊपर लेटे हुए थे। उनसे कुछ ही दूरी पर फ्रिट्ज ने उस डंडे को गाड़ दिया ओर जाल का एक सिरा उससे बांध दिया। इसके बाद हम सबने जाल का एक-एक सिरा पकडा और खूब चौड़ा तानकर बड़ी सावधानी के साथ उन कछुओ पर फैला दिया। जाल फैलाते ही बालू पर लेटे सारे के सारे कछुए जाल में फंस गए। हालांकि फिर भी उन्होंने समुद्र में भागने की कोशिश की, लेकिन वे भाग न सके।
अब हमारे सामने यह समस्या थी कि उन्हे किस तरह रखा जाए। इसके लिए भी हमने एक उपाय सोच ही लिया। हमारे बच्चों ने सारे कछुओं को पीठ के बल पलट दिया और मैंने उनके ऊपरी हिस्से पर दोनों ओर एक-एक छेद करके रस्सियां फंसा दीं। बाद में उन रस्सियों को पास के पेड़ो में बांध दिया। इस तरकीब से दो फायदे हुए। एक तो यह कि कछुए चल-फिर सकते थे, पानी में जा सकते थे और जिन्दा रह सकते थे, दूसरे यह कि भाग नहीं सकते थे। जरूरत पड़ने पर उनका उपयोग किया जा सकता था।
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