जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
मुझे चले जाना है! मेरे पास ज़्यादा समय नहीं है-कार्यक्रम में यही सब कहा जाता रहा, क्योंकि उन लोगों को पहले ही बता दिया गया है कि मैं आधा घंटे से ज़्यादा नहीं रुक पाऊँगी। थोड़े-से और ज़्यादा वक्त के लिए अंतोयानेत फुक और क्रिश्चन बेस में बाकायदा जंग शुरू हो गयी। आखिरकार क्रिश्चन ने ट्रेन का समय थोड़ा टाल दिया और 'द फाम' के लिए थोड़ा-सा समय निकाल ही लिया। थोड़े और वक्त तक वहाँ रहना, भला ही हुआ। मेरे लिए फूलों के काफी सारे गुलदस्ते इंतज़ार में थे! गीतों का कार्यक्रम भी मेरी प्रतीक्षा में था! फ्रेंच गायक-गायिकाओं ने मुझे संबोधित करके गाया। असाधारण गीत था! मैं तो मुग्ध होना भी भूल गयी, सिर्फ स्तम्भित हो कर रह गई।
मुझे नांत शहर जाना है! पुरस्कार लाने! मैं ज़रा साँस लेना चाहती हूँ! मैंने फरमाइश की, “मेरे साथ जिल को भी जाना पड़ेगा।" हाँ, बेशक! बेशक! जिल को पकड़कर लाया गया। "मैं हवाई जाहज से नहीं जाऊँगी, रेलगाड़ी से जाऊँगी।" चलो, वही सही! वेहद तेज़-रफ्तार ट्रेन! लेकिन यहाँ भी चैन नहीं! चूंकि मैं जा रही हूँ, इसलिए परी-की-पूरी ट्रेन खाली करा ली गयी! हैरत है! यह देखकर मुझे वेहद बुरा लगा! मैं सिर झुकाए रही। अपने को बुरी तरह अपराधी महसूस करती रही, ट्रेन में जितने भी फर्स्ट क्लास के डिब्बे थे, सब हमारे लिए बुक कर दिए गए। क्रिश्चन, जिल, मैं और अनगिनत पुलिस! विमान-भ्रमण से कहीं ज़्यादा मुझे रेल-भ्रमण में मज़ा आता है! लोग-वाग, घर-मकान, पेड़-पौधे वगैरह देखते हुए जाना, मुझे बेहद भला लगता है। आकाश के बादल और अमोघ शून्यता निहारना मुझे बिल्कुल भला नहीं लगता। जिल के साथ छेड़छाड़ करते हुए मेरे नाम आए हुए पत्रों के ढेर में से कुछेक पत्र खोल-खोलकर उसका अनुवाद सुनते-सुनते, मुझ पर लिखी गयीं फ्रेंच कविताओं का मज़ा लेते-लेते, जुवान से कहने के लिए, दो-एक टुकड़े फ्रेंच सीखते-सीखते, खिड़की से दौड़ते-भागते छोटे-छोटे गाँव-शहर देखते-देखते और चाय पीते-पीते-हमारा काफिला आगे बढ़ता रहा! एक व्यक्तिगत जीवन का अहसास मुझे अगाध सुख दे गया।
'नांत' शहर के होटल द विले में पुरस्कार वितरण समारोह सम्पन्न हुआ! पुरस्कार का नाम था-'ए डिक्ट द नांत' पुरस्कार। इस पुरस्कार का एक इतिहास भी है। फ्रांस के राजा हेनरी चतुर्थ ने सन् 1598 में धर्मयुद्ध बंद करने के लिए, जिस कागज पर दस्तख़त किया, उसी कागज का नाम है-एडिक्ट द नांत! फ्रांस मूलतः कैथोलिक लोगों का देश है! लेकिन यहाँ जिन लोगों ने प्रोटेस्टेंट धर्म ग्रहण किया था, उन लोगों को-यूगोनोत कहा गया। यह नाम मार्टिन लूथर के प्रोटेस्टेंट धर्मावलम्बियों को नहीं, बल्कि उन लोगों को दिया गया, जिन लोगों ने जॉन केल्विन के रिफॉर्मेशन को क़बल किया था। यूगोनोत लोगों पर कैथोलिक लोग अत्याचार करने लगे! उन लोगों पर सिर्फ अत्याचार ही नहीं करते थे, बल्कि बड़े ठंडे दिमाग से उन लोगों का खून भी कर डालते थे। हजारों-हजार यूगोनोत लोगों की हत्या की गयी। फ्रांस के इस नांत शहर ने यूगोनोत लोगों के प्राणों की रक्षा की थी। फ्रांस के बीस शहरों में यूगोनोत लोगों को अपने धर्म-पालन की आज़ादी मिली थी। सन् 1610 में जब हेनरी चतुर्थ की हत्या कर दी गयी, तब कैथोलिक गिरजाघरों का अहम काम बन गया यूगोनोत लोगों की हत्या करना। हेनरी चतुर्थ का बेटा लई तेरह इस हत्या के पक्ष में था। उसने 'एडिक्ट द नांत' की कतई परवाह नहीं की। एक बार उससे कहा भी गया कि-आँरी (हेनरी) तृतीय और चतुर्थ ने तो वचन दिया था कि वे ढेरों सुविधा प्रदान करेंगे।
लुई तेरहवें ने कहा, "पहला आँरी (हेनरी) उन लोगों से डरता था, दूसरा उन लोगों को प्यार करता था, लेकिन मैं न तो उन लोगों से डरता हूँ, न प्यार करता हूँ।"
इसके बाद लुई चौदह, सूर्य राजा के आगमन के बाद उन्होंने यह प्रचार शुरू किया कि अब से एक विश्वास, एक नियम-कानून, एक राजा होगा। उसके शासन के जमाने में ही यगोनोत लोगों को परी-पूरी तरह ध्वंस कर डाला गया। उन्हें जलाकर मार डाला गया। घर-द्वार फूंक डाले गए। उन लोगों को देश से बाहर भी जाने नहीं दिया गया। जो बच गए, उन लोगों को गुलाम बनाकर जहाज में भरकर तुर्की को वेच दिया गया। उन लोगों का प्रत्येक मंदिर तोड़कर धूल में मिला दिया गया। वहुतेरे लोगों को वेस्टइंडीज़ के फ्रेंच कॉलोनी में जिंदगीभर के लिए गलाम बने रहने को चालान कर दिया गया। यूगोनोत माँ-बाप से उनकी संतानों को छीन लिया जाता था और उन संतानों को कैथोलिक पादरियों को सिखाने-पढ़ाने के लिए सौंप दिया जाता था। ढाई लाख यूगोनोत भागकर स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, इंग्लैंड, अमेरिका, हॉलैंड, पोलैंड, दक्षिण अफ्रीका चले गए, जहाँ उन लोगों को अपने धर्म-पालन की आज़ादी थी। सन् 1688 से 1689 तक विशाल संख्या में शरणार्थी, दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन के दक्षिण में उत्तमाशा अंतरीप में जा पहुंचे थे।
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