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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :9789352291526

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


वही 'एडिक्ट द नांत' पुरस्कार उन लोगों को ही दिया जाता है, जो लोग अपनी धार्मिक आस्था के कारण होने वाले दंगे-फसाद और युद्ध के खिलाफ़ जंग करते हैं। सभी लोगों की राय है कि मैं ही इस पुरस्कार के लिए सर्वाधिक सुयोग्य हूँ।

उस दिन भी ठसाठस भीड़ ! मेयर जनाब ने बताया कि कार्यक्रम बड़े ऑडिटोरियम में ही आयोजित किया जाना था, लेकिन सुरक्षा कारणों से यह संभव नहीं हो पाया। जो बड़े अधिकारी, जिन पर सुरक्षा का दायित्व है, उन्होंने छोटे ऑडिटोरियम में कार्यक्रम करने की हिदायत दी है। सभी लोगों के मामले में आगे-पीछे से इतनी ज़्यादा तलाशी ली गयी है कि बहुत से लोग, यहाँ तक कि बहुत से मंत्री, डिप्टी मंत्री तक को परिचय-पत्र के विना अंदर दाखिल होने की अनुमति नहीं दी गयी है। वेहद कड़े इंतज़ाम! यह सव सुनकर मारे गुस्से के मेरे तन-बदन में आग लग गयी।
फ्रेंच में छपी मेरी 'लज्जा', होटल द विले में सोने के फ्रेम में मढ़कर रखी गई। औपचारिक ढंग से मेरे हाथों में पुरस्कार अर्पित किया गया। पुरस्कार में डेढ़ लाख फ्राँ का एक चेक, मानपत्र और कैनवास पर चित्रित की हुई एक पेंटिंग शामिल है। वह पेंटिंग मेरी संस्कृति के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करने के लिए चित्रित की गई है। साड़ी पहने हुए चंद लड़कियों की धुंधली-धुंधली छायाएँ! यह पेंटिंग शहर के श्रेष्ठ कलाकार के हाथों बनायी गयी थी। नांत शहर के गण्यमान्य लोग, सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारियों की भीड़ उस दिन होटल द विले के सिटी हॉल में जमा थी! मेरा लिखित वक्तव्य अंग्रेजी में था, बगल में खड़े दुभाषिए ने अंग्रेजी से फ्रेंच में अनुवाद पढ़कर सुनाया दुभाषिया जब अनुवाद कर रही थी, मैंने गौर किया, उसकी उँगलियाँ काँप रही थीं। वह प्रोफेशनल इंटरप्रीटर थी इसीलिए उसकी काँपती हुई उँगलियाँ देखकर मुझे अचरज ही हुआ!

बाद में उस लड़की ने ही बताया, "तुम्हारे सामने खड़ी हूँ, इस बात से मैं बेहद नर्वस हो उठी थी! यह तो हमारे जिंदगी-भर का सपना है।"

इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस! बस, यही मैं किसी शर्त पर पसंद नहीं कर पाती।

बहरहाल, जोर-ज़बर्दस्ती लादी गयी चीज़, मैंने जैसे-तैसे निबटाया। उसके बाद, मैं बैंक्वेट-रूम में पहुँच गयी, जहाँ नांत विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, जूरी बोर्डर और बाकी सब लोगों के साथ नगर की गण्यमान्य हस्तियाँ मेरा इंतजार कर रही थीं। सभी लोग मेरा ऑटोग्राफ लेने को लगभग पगला उठे। सबके हाथों में, 'लज्जा' और 'कलाम' की कितावें! जो लोग किताबें नहीं लाए थे, उन लोगों ने निमंत्रण-पत्र पर मेरे हस्ताक्षर लिए। निमंत्रण-पत्र काफी खूबसूरत था। मेरा मन हुआ कि, एक निमंत्रण-पत्र मैं भी अपने पास रख लूँ, लेकिन वे लोग सोच भी नहीं सकते थे कि मुझे वह तुच्छ-सी चीज़ चाहिए। मेयर और चंद अन्य लोगों के लिए औपचारिक डिनर था। डिनर के समय, वच्ची-बच्ची लड़कियाँ, ड्राइंग बनाए कार्ड मुझे भेट देने आयीं। कार्ड में लिखा हुआ था-हम सब तुम्हें प्यार करती हैं।

पौरसभा की तरफ से घोषणा की गयी-नांत शहर की चाबी मेरे हाथ में दी जा रही है। अब मैं इस शहर की नागरिक बन गयी हूँ। अच्छा! इसका मतलब क्या यह हआ कि अब मैं इस शहर में आकर रह सकती हूँ? क्या सच ही मैं इस शहर की नागरिक बन गयी? मैं अकेली-अकेली सोचती रही। मेरा मन चाहा कि मैं स्वीडन छोड़ दूं और यहाँ चली आऊँ! इस शहर का दरवाज़ा खोलकर इसी शहर में रहने लगें।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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