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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :9789352291526

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


मैंने क्रिश्चन से पूछा, “अच्छा, क्या सच्ची ही मैं इस शहर की नागरिक बन गयी?"

“हाँ, बेशक़!''

मैंने ज़रा हँसकर, ज़रा रुक-रुककर कहा, मानो मैं मज़ाक कर रही हूँ, "इसका मतलब यह हुआ कि अब मैं इस शहर में आकर रह सकती हूँ?"

क्रिश्चन हँस पड़ी, “अरे भई, यह चाबी का मामला, मुख्य रूप से सम्मान की चीज़ है।"

मेयर साहब और उनकी बीवी नांत की मिट्टी पर क़दम रखने के बाद एक-दूसरे की छाया बनकर साथ रहते हैं! उन दोनों ने मुझे शहर के सबसे अच्छे रेस्तराँ में सबसे लज़ीज़ खाना खिलाया। बंगालियों की तरह फ्रांसीसी भी अच्छे खाने के लिए पगलाए रहते हैं। खाने के साथ-साथ हर जगह वाइन! मैं न तो वाइन पीना जानती हूँ, न मुझे फोयाग्रा की समझ है। न समझती हूँ मागरे द कैनर का माहात्म्य! मैं कुछ भी नहीं समझती, फिर भी ये सब मुझे प्यार करते हैं। मेयर, मेयर की पत्नी और होटल द विले के चंद डिप्टी-हम सब मिलकर डॉल्फिन रेस्तराँ पहुँचे। वहाँ बेहद शानदार लंवा लंच! मेयर साहब ने मुझे बार-बार याद दिलाया कि नांत अब, तुम्हारा शहर है। जब चाहे चली आना। तुम आओगी, तो नांत में हँसी-खुशी का उत्सव मनाया जाएगा।

हम सब नौका-विहार को निकल पड़े। यह वह नदी है, जो जाकर इंगलिश चैनल में जा मिलती है। उसके बाद ऊपर सिटी की तरफ! मेयर मुझे शहर दिखाते-दिखाते, पुराने कैसल...राजमहल तक ले गए! उन्होंने वाटर रेस भी दिखाया। मेयर और उनकी पत्नी ही मुझ पर अपना अधिकार जमाए रहीं। वाकी और लोगों को मुझसे बातचीत का खास मौका नहीं मिला।

मेयर की पत्नी ने मेरे कोट में एक पिन लगाते हुए कहा, “नांत नगरी तुम्हें हमेशा-हमेशा याद रखेगी।"

जब हम नाव से उतरकर दुबारा शहर में दाखिल हुए, तो सैकड़ों लोग मुझे देखने के लिए खड़े मिले। मैं झेंप गयी, लेकिन कहीं अच्छा भी लगा। हम स्टेशन आ पहुँचे। मेयर और उनके संगी-साथी हमें विदा देने आए। इस तरह, जूल वार्न के जन्म के शहर, नांत में हम दिन गुज़ार आए।

अर्ली हवाई अड्डे से स्ट्रसवुर्ग की तरफ! इस यात्रा में भी महाकांड हुआ। हमारी गाड़ी सीधे-सीधे विमान की सीढ़ियों तक जा पहुँची। हमें इंतज़ार करना पड़ा। क्यों? विमान की तलाशी चल रही थी। किसके जरिए? पुलिस के कुत्तों के जरिए। कुत्ते जब सँघ-साँघकर चले आए, तब मुझे विमान में ले जाया गया। मेरे साथ लगभग हवाई जहाज-भर पुलिस, क्रिश्चन, फ्रेडरिक, फन्याक के अधिकारी लोग, किराए के दुभाषिए!

स्ट्रसबुर्ग उतरकर सबसे पहले ही ट्रांजिट कार्यक्रम ! आर्ते टेलीविजन। इसी टीवी के आमंत्रण पर, पिछली अप्रैल को मैं फ्रांस आयी थी। आर्ते का फ्रेंच और जर्मन टेलीविजन! यहाँ का ट्रांजिट कार्यक्रम वेहद उच्च मान का होता है। उसी टीवी स्टेशन में ही फ्रेंच टीवी तिन से भी बातचीत करनी पड़ी।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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