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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :9789352291526

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


अमेरिका से एक पत्रकार, स्ट्रसवुर्ग आ पहुँचा था। मैं पैरिस में वक्त नहीं दे पायी थी, इसलिए वह इस उम्मीद में यहाँ आ पहुँचा था कि शायद विमान के सफ़र के दौरान ही थोड़ी-बहुत बातचीत हो जाए। पैरिस पहुँचकर फिर वही आगे-पीछे गाड़ियों का हॉर्न, मोटर साइकिलें और गाड़ी समेत पुलिस फौज! सड़क पर ट्रैफिक के बावजूद सभी गाड़ियों को पीछे छोड़कर, ट्रैफिक न मानते हुए, मेरा काफिला सबसे आगे बढ़ गया।

फिर एक जगह से दूसरी जगह की उड़ान! स्ट्रसबुर्ग की उड़ान! मार्सेइ की तरफ उड़ान! स्ट्रसबुर्ग के फन्याक तक जाना पड़ा। वहाँ के मेयर ने आमंत्रित किया था। मार्सेइ के मेयर ने मार्सेइ आने का न्योता भेजा था। तीनों ही फन्याक में हज़ारों लोगों की भीड़! मेरी एक झलक पाने की भीड़! मेरा ज़रा-सा स्पर्श पाने की भीड़! थोड़ी-सी बातचीत और 'ब्रेभो' कहने की भीड़! आम जनता ऑटोग्राफ लेने के लिए उमड़ी हुई!

सुबह-सबेरे अर्ली हवाई अड्डा! होटल के सामने समूचे दिन, समूची रात बंदूकधारी पुलिस तैनात! रास्ते बंद! सामने की सड़क पर गाड़ियों की आवाजाही बंद! हुँः अद्भुत तमाशा! मैं मार्सेइ जा रही थी! फ्रांस के दक्षिणी हिस्से में! मेरे साथ फन्याक का दल, किराए के अनुवादक भी थे। हवाई अड्डे में फिर वही पुलिस तलाशी! भूमध्य सागर के तट पर स्थित मार्सेइ! मार्सेइ में भी सड़क पर पुलिस का जत्था तैनात! ख़ासकर फन्याक जाने वाली दो मील की सड़क पर! वहाँ एक दृश्य देखकर, मेरा मन बुरी तरह बौखला गया। जब मेरी गाड़ी सड़क से गुज़र रही थी, ज़ोर-ज़ोर से हॉर्न बजाती हुई गाड़ी की तूफानी रफ्तार देखकर, लोग सड़क पर हतप्रभ-से खड़े रह गए। रास्ते की पुलिस उन लोगों को धकियाकर हटाने लगी। कुछ लोग ज़मीन पर गिर पड़े। मुझे बेहद तरस आने लगा। पुलिस की इस अतिशयता पर, मुझे बेहद झुंझलाहट हुई!

फन्याक में सबसे पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस! उसके बाद पाठकों से बातचीत! शहर के मेयर ने कार्यक्रम की शुरुआत की। ढेरों पाठक! हॉल-घर में लोग टूटे पड़ रहे थे। कहीं खड़े होने की भी जगह नहीं। पाठकों की तरफ से एक ही जुमला-"तसलीमा, हम सब तुम्हारे साथ हैं।" मार्सेइ की औरतों ने मेरे समर्थन में एक किताब तैयार की थी। वह किताव मुझे अर्पित की गई।

कई उम्रदराज महिलाओं ने कहा, "यह लो मेरा पता! मेरा घर तुम्हारे लिए हमेशा खुला रहेगा। मैं तुम्हें जिंदगी-भर अपने पास रखूगी।"

फूलों और उपहारों से मैं नहा गयी। उसके बाद रेस्तराँ! मेयर द्वारा दी गयी पार्टी! गण्यमान्य हस्तियाँ मौजूद ! भूतपूर्व न्यायमंत्री मुझसे मिलने आए। मेरी तस्वीरें भी उतारी! उनके चेहरे पर धन्य हो जाने का गद्गद भाव! रस्तराँ से बाहर निकलते हुए मेरी नज़र पड़ी, रेस्तराँ में बैठे वाकी सभी लोग उठकर तालियाँ बजा रहे हैं! मैंने पैदल चलने की इच्छा जाहिर की। पुलिस ने झटपट मेरे पैदल चलने का इंतज़ाम कर डाला। रेस्तराँ के बाहर असंख्य फोटो पत्रकार खड़े थे। इतनी सारी तस्वीरें उतारने के वाद भी, उन लोगों को दुवारा तस्वीरें लेने की ज़रूरत क्यों आ पड़ी, मेरी समझ में नहीं आया। मैं पैदल-पैदल आगे बढ़ने लगी और मेरे पीछे-पीछे लगभग पचास फोटो-पत्रकार! उनमें से एक व्यक्ति तो पीछे-पीछे हटते हुए एकदम से खंभे से टकरा गया और उलटा गिर पड़ा। अगले ही पल उठकर फिर क्लिक! क्लिक! इस क्लिक! क्लिक! के मारे अंत में गाड़ी में बैठ जाना पड़ा। हवाई अड्डे जाते हुए शहर के बाहर, रास्ते में मल्लाहों की नावें बँधी हुईं! मैंने गाड़ी रुकवायी और पैदल-पैदल सागर निहारते-निहारते आगे बढ़ने लगी। अचानक एक मल्लाह की मुझ पर नज़र पड़ गयी।

वह दौड़कर हाथ मिलाने आया और उसने फ्रेंच में कहा, "इस वक्त अगर मुझे भगवान के भी दर्शन हो जाते, तो शायद इतना खुश नहीं होता।"

प्रचार-माध्यम इंसान को कहाँ, कितनी दूर तक पहुँचा देते हैं, मुझे अहसास हो आया। मार्सेइ के शहरी छोर पर, शाम के वक्त समुंदर किनारे कुछ लोग गॉल्फ खेल रहे थे। मैंने देखा अचानक सब जहाँ के तहाँ रुक गए और मुझे निहारने लगे। वे लोग हाथ हिला-हिलाकर मरा अभिनदन करने लगे। लगता है, फ्रासक 60 मिलियन लोग ही मुझे पहचानने लगे हैं।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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