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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :9789352291526

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


ऑस्ट्रिया की नारी कल्याण मंत्री, इओहाना डोनल की तरफ से आमंत्रण! वहाँ भी सबसे बड़े होटल के सूट में रुकना पड़ा। यह विएना का पैलेस कबुर्ज है। उन्नीसवीं सदी का निओ क्लासिकल होटल! वह होटल देखकर आँखें चौंधिया गयीं। यह लगता ही नहीं है कि मैं इसी दुनिया में हूँ। कोठी अंदर से कैसी है, यह देखे बिना, उस कोठी को दूर से ही देखकर, कोई राय बनाना संभव ही नहीं है। मंत्रियों के आमंत्रण पर वहाँ सबसे महँगे रेस्तराँ में खाना पड़ा। नारी संबंधी मंत्री, इओहाना डोनल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की हैं और शिक्षा मंत्री के पद पर बहाल हैं। अपने सीमित ज्ञान के मुताबिक मैंने उनसे ऑस्ट्रिया की राजनैतिक अवस्था, शिक्षा व्यवस्था, औरतों की सामयिक स्थिति के बारे में जानना चाहा। इओहाना डोनल खाते-खाते ही मुझे सारा कुछ बताती रहीं। जब मैं नया कुछ सुनती या देखती या समझती-सीखती हूँ, मैंने देखा है कि मैं सबसे ज़्यादा खुश होती हूँ। वह जो लाल गलीचा बिछाकर मेरा अभिनंदन किया जाता है, उससे सैकड़ों गुना ज़्यादा, खुशी होती है। डैन्यूब नदी के तट पर छोटा-सा शहर विएना काफी हद तक राजकीय, कान लगाते ही ध्रुपदी संगीत! मोज़ार्ट और विथोवन के शहर को मैंने भर-भर आँखों से देखा। शनोबुन राजमहल का बैरोक स्थापत्य के दर्शन किए। म्यूजिकफेराइन के गोल्डन हॉल में विएना मोजार्ट आर्केस्ट्रा का आनंद लिया। सन् 1869 में मोज़ार्ट का डॉन गियोवानी जहाँ दिखाया गया था, उसी स्टेट ऑपेरा हाउस में, ध्रुपदी की मूर्छना और ज़्यादा-ज़्यादा डूब गयी। मैंने एक और बात गौर की है कि शास्त्रीय संगीत सुनने या ऑपेरा देखने के लिए लोग बहुत सज-धजकर आते हैं। वैसे यह सब ज़्यादातर अमीर लोग ही देखते हैं, मैं ही एकमात्र अश्वेत प्राणी हूँ, अगर मैं गोरे अमीरों से घिरी और और उनके द्वारा सम्मानित होकर भी वहाँ अंदर दाखिल होती हूँ, तो भी तत्काल समझ जाती हूँ कि इस जगह के लिए मैं निश्चित रूप से मिसफिट हूँ। इतने सारे श्वेत लोगों के ढेर में रहते-सहते, अक्सर मैं भूल ही जाती हूँ कि मैं श्वेत नहीं हूँ। मैंने यह भी देखा है कि सड़क पर किसी काले या बादामी रंग के किसी व्यक्ति को देखती हूँ, तो जाते-जाते भी उसे मुड़-मुड़कर देखती रहती हूँ। गोरों के राज्य में कोई काला या बादामी मुझे बेहद बेमेल लगता है। मैं खुद भी बेमेल हूँ, यह बात याद नहीं रहती। इसके बाद, अचानक जब होश आता है कि खुद भी गोरी इंसान नहीं हूँ, तो मेरी पलकें खुद झुक जाती हैं।

दर्शक, श्रोताओं को तरह-तरह के यंत्र-मशीनों के जरिए आपाद्मस्तक जाँच करने के बाद ही अंदर दाखिल होने की अनुमति दी जाती है। जाँच यह पता करने के लिए होती है कि वे लोग कोई बम-वम तो साथ नहीं लाए। कार्यक्रम रात को है। मेहमान सई-साँझ ही अंदर चले आए। आमंत्रण के बिना, किसी को भी अंदर नहीं आने दिया गया। आम तौर पर जैसा मिला-जुला कार्यक्रम होता है, यह वैसा नहीं है, इओहाना डोनल द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में चांसलर फ्रान्स भ्रानित्ज़किन ने दो शब्द कहे। मुझे जो कहना था, कह लेने के बाद, अंग्रेजी-जर्मनी में प्रश्नोत्तर पर्व शुरू हुआ! जितना बोलना संभव था, मैंने बोल दिया। फिर भी काफी कुछ अबोला रह गया। यथारीति सैकड़ों पत्रकारों की भीड़! टीवी पर सीधा प्रसारण! विभिन्न अखबारों में लिखना वैसे अब, मुझे ये सब विषय अवाक नहीं करते। मानो इन सबके केंद्रबिंदु में मुझे रहना ही होगा। इन सबसे ज़रा-सी आड़ में जाना मेरे लिए असंभव है। टेलीफोनहीन टॉयलेट मेरे लिए शायद एकमात्र प्राइवेट जगह है। प्रश्नोत्तर पर्व चलता रहा। हर वार प्रश्न ही नहीं उछाले गए, वहुत बार लोग सिर्फ मंतव्य ही जाहिर करते रहे। बहुत-से लोगों ने अपने मनोभाव भी व्यक्त किए। मुझे देखकर उन लोगों को कितनी खुशी हुई है। मैं कितनी धमकियों के बीच रही, कितनी समस्याओं में उलझी रही, कितनी-कितनी आशंकाओं-परेशानियों में घिरी रही, कितनी असहनीय तकलीफों से गुज़री हूँ–यह सब जान-सुनकर वे लोग यह बताते रहे कि कितने सुखी हैं वे लोग, सुख-सुविधाओं के सागर में गोते लगा रहे हैं। मुझे देखकर उनके मन का जोर, पहले से ज्यादा बढ़ गया है। इतना साहस मुझे कहाँ से मिला? मेरा आदर्श कौन है-ये सब सवाल तो खैर पूछे ही जाते थे, जिनका कोई जवाब नहीं होता था, लेकिन आजकल तो मैं और एक किस्म की समस्या झेल रही हूँ। दुनिया भर में जितनी भी समस्याएँ है, कोई-कोई उन सबका समाधान मुझसे ही चाहते हैं। कुछ लोग अपना अतीत-वर्तमान, आदर्श, विश्वास, अपना कला-साहित्य, अपने विचार से परे, दुनिया की तमाम जटिलताएँ लेकर मेरे सामने हाज़िर हो जाते हैं, लेकिन मुझमें इतनी क्षमता नहीं है कि मैं उसका समाधान दे पाऊँ। अगर मैं उनके सवालों का जवाब नहीं दे पाती तो मुझे अहसास हो जाता है कि उन सब की नज़रों में, मैं समूची की समूची गाय बन जाती हूँ। जव उन लोगों ने मुझसे यह जानना चाहा कि ऑस्ट्रिया में निओ-नाज़ी लोगों की संख्या बढ़ती क्यों जा रही है, इसके पीछे का कारण क्या है, तो मैं ख़ामोश रही। सीधी-सच्ची बात यह है कि यह सब मैं नहीं जानती। ऐसे में बहुतेरे लोग, बिना जाने-समझे ही तरह-तरह से चिप्पी लगाकर, कुछ-कुछ बोले देते हैं। मैं ऐसा कुछ करने के पक्ष में नहीं हूँ।

दर्शक-श्रोता प्रमुख रूप से गोरे ऑस्ट्रियन थे। सिर्फ दो लोगों को छोड़कर! प्रश्नोत्तर पर्व के बाद जब ऑटोग्राफ लेने की बारी आयी, बादामी चमड़ी वाली दो लड़कियाँ उठकर लंबी कतार में खड़ी हो गयीं। मेरी निगाह बार-बार उन लड़कियों की सूरत पर गड़ गयी।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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