जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
|
6 पाठकों को प्रिय 419 पाठक हैं |
औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
ऐसा मैं बांग्लादेश में भी करती थी। मुझे किसी में भी अगर प्रतिभा नजर आती थी। अपने भरसक प्रयास और प्रभाव से, उसे किसी पत्रिका कार्यालय में भेज देती थी। झट से काम बन जाता था, लेकिन स्वीडन में काम जैसा काम नहीं होता। क्यों? पत्रकारिता का शायद कोई सर्टिफिकेट चाहिए, लेकिन क्या सच ही सर्टिफिकेट जरूरी है? यहाँ तो इस देश के कॉलेज, विश्वविद्यालयों में जाने की दिलचस्पी लोगों में कम है। इतने-इतने पत्रकार तो फैले हुए हैं यहाँ। कितनों के पास विश्वविद्यालय की डिग्री है? काफी कम लोगों के पास! कुछेक साल लिखाई-पढ़ाई करके, डॉक्टर या इंजीनियर या कोई विराट पदवीधारी बनने की चाह, यहाँ के लोगों में खास नजर नहीं आती। हर कोई रातोरात नाम कमाना चाहता है। अगर अच्छा गाते हो तो किसी कंपनी को पकड़ो। थोड़ा बहुत बोलना और लिखना आता हो, तो पत्रकार बन जाओ। टी.वी. में अपना मुखड़ा दिखाओ और मशहूर हो जाओ यानी हर कोई नाम का भिखारी है! कष्टहीन कृष्ण पाने की साध सबको है।
वही सोल! दीदी जैसी सोल, एक रात अचानक भयंकर रूप से चीख उठी, क्योंकि कमरे में फोन बज उठा था। जब मैंने फोन की बातचीत खत्म की, उसने जानना चाहा कि किसने फोन किया था!
"मेरे प्रेमी ने!" मैंने जवाब दिया।
वह एकबारगी फट पड़ी, "क्यों? प्रेमी क्यों? क्या चाहता है प्रेमी? इतनी रात गए, वह तुम्हें क्यों तंग कर रहा है? प्रेमी रखकर क्या होगा?"
उसकी वह चीत्कार सुनकर मैं सिहर उठी। सोल ऐसे क्यों पेश आ रही है? उसको अचानक क्या हो गया? चीत्कार के बाद, सोल बुरी तरह रो पड़ी! भयंकर थी वह रुलाई!
रोते-रोते ही वह बिस्तर के पास आ खड़ी हुई और उसने कहना शुरू किया कि उसके इस आकस्मिक आवेग के लिए मैं उसे गलत न समझें। वह गैब्रिएला को प्यार करती थी और अब उससे कोई रिश्ता-नाता नहीं रहा। इसी वजह से वह रो पड़ी। उसने रो-रोकर यह भी बताया कि कैसे गैब्रिएला के प्रसंग में उसने बताया था कि गैब्रिएला उसकी दोस्त थी! दोस्त! अगर वह प्रेमिका होती तो वह उसे अपनी प्रेमिका ही कहती। मैंने भी और किसी तरह का अंदाजा नहीं लगाया। गैब्रिएला के प्रसंग में वह रो क्यों पड़ी? मेरा फोन आने पर वह चीख क्यों पड़ी? मेरे इन तमाम सवालों का जवाब मुझे धीरे-धीरे मिला। सोल जरूर समलैंगिक है और मुझे वह बे-हद प्यार करती है, लेकिन मेरे सामने उसने बार-बार यही कहा है कि मैं उसकी छोटी बहन जैसी हूँ। यह सुनकर मैं आश्वस्त हो गई। चलो, वह समलैंगिक हो, मुझे इसमें कोई परेशानी नहीं है। बस, मुझ पर न टूट पड़े तो गनीमत है, क्योंकि मैं समलैंगिक नहीं हूँ।
|
- जंजीर
- दूरदीपवासिनी
- खुली चिट्टी
- दुनिया के सफ़र पर
- भूमध्य सागर के तट पर
- दाह...
- देह-रक्षा
- एकाकी जीवन
- निर्वासित नारी की कविता
- मैं सकुशल नहीं हूँ