जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
अब तो मैं यह भी भूलती जा रही हूँ कि मेरे कोई नाते-रिश्तेदार भी हैं या कभी हुआ करते थे। मेरा कोई अतीत भी था, कभी-कभी मुझे लगता है कि यह भी भूल गई हैं। छोट' दा जब यहाँ आया था तो चटकी बजाते ही, मेरी जिंदगी उसी अतीत में जा पहुँचती थी। उन दिनों वर्तमान में होते हुए भी, यह विल्कुल नहीं लगा कि वर्तमान कहीं मेरे आस-पास भी है। जब अब्बू आए थे, अचानक कुछेक दिन विल्कुल अलग ढंग से गुज़रे थे। नहीं, न भाई, न छोटू' दा, न नाते-रिश्तेदार, कोई भी नहीं। सिर्फ अब्बू ने ही देखा था, मेरे प्रति लोगों का श्रद्धा-निवेदन! सर्दी के मौसम में, अचानक आधी रात को, अब्बू ऑक्सफोर्ड आ पहुँचे। उसी शाम ऑक्सफोर्ड में व्याख्यान संपन्न हुआ था। अब्बू के साथ मैं 'ऑल सोलस कॉलेज' के गेस्ट हाउस में ठहरी थी। अगली रात, उस कॉलेज के अध्यक्ष ने प्रोफेसर और शोधकर्ताओं को एक औपचारिक डिनर पर आमंत्रित किया था। उस डिनर के दौरान मेरी नज़रें अब्बू की तरफ ही लगी रहीं। उनसे किसी सवाल का जवाब देते नहीं बना। वे फटी-फटी आँखों से बस, चारों तरफ देखते रहे। अंग्रेजी आते हुए भी मेरे अब्बू को अंग्रेजों का एक भी जुमला समझ में नहीं आ रहा था, इसलिए तसलीमा के अव्व होते हुए, उनके संकोच का कहीं, कोई अंत नहीं था। खैर, मझे भी क्या कम शर्म आई थी? मैंने बड़े गर्व से अब्बू का सभी लोगों से परिचय कराया था। मैंने शान से बताया कि वे डॉक्टर हैं। लेकिन अब्बू तो विल्कुल गूंगे बने रहे। मुझे अंदर-ही-अंदर गुस्सा आता रहा और शर्म भी आती रही। अब्बू और भी ज्यादा संकोच से सिकुड़ गए। लेकिन उन्होंने मुझ पर यह जाहिर नहीं होने दिया कि वे मेरी शर्मिन्दगी की वजह हैं!
अब्बू को लेकर, मैं ऑक्सफोर्ड से स्वीडन चली आई उन दिनों स्वीडन में, में अपने नए एपार्टमेंट, स्टॉकहोम के क्रिश्टिनावर्गमैगन में रहती थी। मैंने बताया था न कि इस शहर में कोई नया एपार्टमेंट किराए पर पाने में पूरे तेरह चौदह वर्ष लग जाते हैं। लेकिन मेरे माँगते-न माँगते ही मुझे एपार्टमेंट मिल गया था। किराया भी अधिक नहीं था। स्वीडन में घर-किराए के बारे में एक नियम मौजूद है। किस किस्म के मकान का क्या किराया होगा, सरकार द्वारा ही यह तय कर दिया जाता है। मकान-मालिक को यह हक़ नहीं है कि वह अपने मकान का, अपनी मर्जी-मुताबिक किराया वसूल करे। बहरहाल मैंने वह एपार्टमेंट किसी तरह सजा लिया है। मैंने कोई भी महँगा सामान नहीं खरीदा। अस्थायी निवास के लिए घर सजा लिया जाता है, लेकिन वहाँ गृहस्थी नहीं वसाई जा सकती। मेरी गृहस्थी तो मेरे देश ढाका में शांतिनगर मुहल्ले में पहले से ही सजी हुई है। अब्बू यहाँ आकर चैन से बैठे ही थे कि विदेशों से आमंत्रण का दौर शुरू हो गया। बेल्जियम के गेन्ट विश्वविद्यालय से आमंत्रण आया है। विश्वविद्यालय के रेक्टर ने सचना दी है कि मझे इस विश्वविद्यालय की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि दी जाएगी। न कोई बातचीत, डॉक्टरेट की उपाधि यूँ दी जाती है, मुझे इसकी जानकारी नहीं थी। 'उठ, री, छंउड़ी, तोरा बियाह' जैसा! ब्रसेल्स से प्रधानमंत्री का भी आमंत्रण आ पहुँचा। यह तो हुई बेल्जियम की बात! इधर जर्मनी के प्रकाशक ने भी लगभग उन्हीं दिनों के लिए आमंत्रण भेजा। इसके अलावा डेनमार्क का भी आमंत्रण! राष्ट्रसमूह यानी राष्ट्रसंघ का शीर्ष सम्मेलन कोपेनहेगेन में आयोजित होने वाला है। वहाँ मुझे भाषण देना है। कोपेनहेगेन के लेखक समदाय और किसी बड़े अखबार की तरफ से आमंत्रण! इस बीच अब्बू आ पहुँचे। मैंने तमाम देशों को सूचित कर दिया कि मैं उनके कार्यक्रम में शामिल होऊँगी, लेकिन, अकेले नहीं, मेरे साथ मेरे पिता भी होंगे। सभी देशों ने फर्स्ट क्लास के दो-दो टिकट भेज दिए। मैंने बेहद विनित भाव से में अपने प्रकाशक से अनुरोध किया कि हम वाप-बेटी, होटल के एक ही कमरे में रह लेंगे। यह सुनकर हफमैन एंड कैम्प का मेरा जर्मन प्रकाशक मानो आसमान से गिरा।
बहरहाल सभी लोगों ने सहयोग दिया। सिर्फ साबेना ने साथ नहीं दिया। साबेना-बेल्जियम का विमान! साबेना ने सूचित किया कि वह मुझे अपने विमान में नहीं लेगा। क्यों? डर! अगर कहीं मुसलमान कट्टरवादियों को यह ख़बर मिल जाए कि मैं उस विमान में हूँ और वे लोग समूचे विमान को ही उड़ा दें, तो क्या होगा? सावेना मुझे नहीं ले जाएगा, यह सुनकर यूरोप के तमाम प्रचार-माध्यम मुझ पर और साबेना पर एक बार फिर टूट पड़े। साबेना की तो नाक में दम कर दिया। क्यों, किस वजह से, तसलीमा को उनके विमान में नहीं लिया जाएगा? साबेना ने अपनी सफाई दे डाली। मुझे तो खैर खास कुछ बोलना ही नहीं था। साबेना की सफाई सुनकर किसी को चैन नहीं आया। उधर रुशदी को भी लुफथान्सा विमान ने कुछ दिनों पहले ही सूचित कर दिया था कि उन्हें नहीं ले जा सकेगा। इस बात को लेकर समूचा यूरोप उत्तेजित हो उठा। इधर मैं नई टिकट लेकर अन्य विमान से ब्रसेल्स पहँच गईं। जब मैं ब्रसेल्स हवाईअड्डे पर उतरी तो मानो कहीं की सम्राज्ञी उतर रही हो। वहाँ कुछ इसी ढंग से अधिकारी और साबेना को कटघरे में खड़ा करके उनसे जवाब तलब किया जाता रहा। खैर मुझे इससे क्या? मैं सीधी-सादी बालिका की तरह कार्यक्रमों में शामिल होती रही। साबेना का झमेला, साबेना ही सुलझाएँ!
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