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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :9789352291526

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


वैसे इन लोगों को भी मेरी कुछेक बातें अजीब लगती हैं, उन सबका अगर एक-एक करके वयान किया जाए तो उन लोगों की शिकायतें निम्नलिखित हैं-

1. मैं किसी व्यक्ति से आँखें मिलाकर बातें क्यों नहीं करती? इसका मतलब यह हुआ कि मैं उसकी उपस्थिति को नज़रअंदाज़ कर रही हूँ। उसकी खास तौर पर उपेक्षा कर रही हूँ।

2. मैं 'धन्यवाद' शब्द क्यों नहीं इस्तेमाल करती? कोई मझे कोई उपहार देता है या मेरे लिए दरवाज़ा खोलता है या मेरी किसी तरह की तारीफ करता है या इसी तरह के सैकड़ों कारणों से, मैं 'धन्यवाद' क्यों नहीं कहती?

3. मैं दुकान या पोस्ट ऑफिस या बैंक या किसी टिकट काउंटर के सामने लगी लंबी लाइन में खड़ी क्यों नहीं होना चाहती?

4. मैं किसी रेस्तरां या कैफे का बिल अकेली ही क्यों निबटाना चाहती हूँ? इसकी क्या यह वजह है कि मेरा ख़याल है कि औरों के पास रुपए-पैसे नहीं हैं? यह क्या दूसरों का अपमान नहीं है?

5. मेरे घर कोई आता है तो मैं उसे खाने को क्यों पूछती हूँ? मैं क्या यह समझती हूँ कि खाना जुटाने की उनकी औकात नहीं है?

6. मैं इतनी-इतनी तरह के व्यंजन क्यों पकाती हूँ, मैं क्या खिला-पिलाकर लोगों को मुग्ध करना चाहती हूँ? किसी और तरीके से उन लोगों को मुग्ध करने की मेरी क्षमता क्या ख़त्म हो चुकी है?

7. जब कोई खा रहा होता है तो उसकी प्लेट में मैं अतिरिक्त खाना क्यों डाल देती हूँ?

8. मैं किसी को उपहार क्यों देती हूँ? उसे जो उपहार देती हूँ, क्या वह चीज़ उसके पास नहीं है या यह सोचती हूँ कि उसमें वह चीज़ खरीदने का दम नहीं है?
 
9. किसी से कुछ माँगते हुए मैं 'कृपया' शब्द क्यों नहीं जोड़ती? "वुड यू प्लीज़ गिव मी ए कप ऑफ टी?" कहने के वजाय “गिव मी ए कप ऑफ टी" क्यों कहती हूँ? मैं क्या लोगों को नौकर-चाकर समझती हूँ?

10. कहीं वाहर जाते हुए, मैं किसी को साथ क्यों नहीं लेना चाहती? रास्ते पर मैं दोस्तों का हाथ पकड़कर क्यों चलना चाहती हूँ?

11. कोई बोल रहा हो तो मैं बीच में उसकी बात काटकर खुद क्यों वाल पड़ती हूँ? मैं क्या दूसरों की बातों के बजाय अपनी बात को ही अहम मानती हूँ? अगर मैं किसी की बात ध्यान से नहीं सुनती तो लोग मेरी बात क्यों सुनना चाहेंगे?

12. कोई भी चीज़ मैं फट् से क्यों ख़रीद लेती हूँ? देख-सुनकर, कई-कई दुकानों में घूमकर कीमत के बारे में मोल-भाव करके चीज़ क्यों नहीं खरीदती?

13. मैं अपने दोस्तों को यह-वह काम कर देने को क्यों कहती हूँ? मैं क्या यह सोचती हूँ कि लोग मेरा यह-वह काम कर देने को लाचार हैं? कोई क्या मेरा नौकर लगा है?

14. ज़रा-सी जान-पहचान होते ही, मैं लोगों को अपने घर आने का आमंत्रण क्यों दे डालती हूँ?

15. मैं अपनी बीमारी-आरामी में दोस्तों को अपने घर क्यों बुलाती हूँ? सिर-माथा सहलाने को क्यों कहती हूँ?

ऐसी ही सैकड़ों शिकायतें!

इस "क्यों" में ही पूरब और पश्चिम का फर्क निहित है!

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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