बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अभियान राम कथा - अभियाननरेन्द्र कोहली
|
5 पाठकों को प्रिय 34 पाठक हैं |
राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान
एक क्षण के लिए तो हनुमान को लगा, जैसे उसने उन्हें पकड़ लिया है और उनकी गति सर्वथा अवरुद्ध हो गई है। उन्होंने अपने सहज बचाव के लिए। उसके शरीर के मध्य भाग पर अपनी खुली हथेली का भरपूर प्रहार किया...सिंहिका को उस आघात ने कुछ पीड़ा पहुंचाई और वह उन्हें छोड़कर पलट भी गई; किन्तु हनुमान स्वयं अनुभव कर रहे थे कि इस प्रकार का युद्ध उनके लिए अधिक हितकर नहीं था।...जल के भीतर उन्हें अपनी शक्ति तथ सन्तुलन को-स्वयं को डूबने से बचाने के लिए प्रेरित किए रखना पड़ता था। फिर जो आघात उन्होंने किया था, उसका आधे से अधिक प्रहारक बल तो स्वयं जल ने सहन कर; क्षीण कर दिया था। उससे इस जल-राक्षसी को कितनी चोट लगी होगी? ऐसी पीड़ा से भला इतना बड़ा जन्तु क्या विचलित होगा! उसके लिए तो कोई निर्णायक प्रहार होना चाहिएः और ऐसा प्रहार पानी के भीतर कैसे होगा? तभी सिंहिका पुनः हनुमान पर झपटी। उसने अपना मुख और भी विकरालता से खोल रखा था, मानो मुख फाड़ने के ही आकार-प्रकार से वह उन्हें डरा देना चाहती हो...सहसा हनुमान के मन में एक विचार आया : जोखिम तो अवश्य था, किन्तु दांव चल गया तो इस जल-राक्षसी से पूर्ण मुक्ति मिल जाएगी।
हनुमान स्वयं ही उसकी ओर बढ़े। उन्होंने अपने हाथ-पैर समेटकर मंडूकाकार हो स्वयं को लघु बना लिया और जल के साथ-साथ स्वयं ही सिंहिका के मुख में प्रवेश कर गए...अब स्फूर्ति और शक्ति-दोनों का ही परीक्षण था। इस बात को कदाचित् सिंहिका ने भी समझ लिया था। उसने तत्काल अपना मुख बंद करने का प्रयत्न किया और हनुमान ने उतनी ही तत्परता से अपने हाथ-पैर खोले तथा अपने पूर्ण आकार में आने का प्रयत्न किया। सिंहिका, अपने दोनों जबड़ों को दबाकर हनुमान को पीस देने के प्रयत्न में थी और हनुमान सीधे खड़े हो, अपने हाथ-पैरों को अकड़ाकर उसके जबड़ों को चीर देना चाहते थे...स्फूर्ति की परीक्षा में हनुमान जीत चुके थे, अब शक्ति-परीक्षण था-यदि सिंहिका अपना मुख बन्द करने में सफल हो जाती तो हनुमान उसके बन्द मुख में भोजन के एक बड़े ग्रास के रूप में स्वतः चबाए जाते; और यदि हनुमान अपने हाथ-पैरों को सीधा कर, उनकी पूरी दूरी तक अकड़ाकर फैलाने में सफल हो जाते तो सिंहिका का मुख, बीच से चिरकर दो भागों में बंट जाता। एक क्षण के लिए हनुमान को लगा कि सिंहिका के जबड़ों का बल उन पर भारी पड़ रहा है। कदाचित् वे अपने हाथ और अधिक फैला तो नहीं पाएंगे, उसके पहाड़ जैसे जबड़े के दबाव में उनकी भुजाएं झुककर, सिमट भी सकती हैं। ऐसी संभावना का विचार-मात्र ही उन्हें ऐसा विचलित कर गया, जैसे ब्रह्मांड ही चूर-चूर हो रहा हो। हनुमान ने अपने हाथों के नख सिंहिका के ऊपरी जबड़े में धंसा दिए और अपने दाहिने पैर से उसके कण्ठ पर भीषण प्रहार किया। इस आकस्मिक् आघात से सिंहिका भी विचलित हो गई। उसके जबडों का दबाव कुछ ढीला पड़ा। हनुमान के लिए इतना ही समय पर्याप्त था। उनके हाथ-पैर अकड़कर पूरी लम्बाई तक फैल गए।
सिंहिका का शरीर ढीला पड़ गया...उसके दोनों जबड़ों के बीच की हड्डियां कड़कड़ा गईं और मांस के फटते ही रक्त की धारा बह निकली...
हनुमान तत्काल बाहर निकले और उस जल-राक्षसी के रक्त से लाल होते हुए पानी को पार करते हुए, क्षिप्र गति से आगे बढ़ गए।
यांत्रिक ढंग से तैरते हुए जब उस भयावह राक्षसी से पर्याप्त दूर निकल गए और उसके पुनः झपट पड़ने की संभावना जब उसके मन से पूर्णतः निकल गई, तो मन में उल्लास-भरे उनकी आंखों ने अपने आसपास के दृश्य को देखा : सहसा जल-जन्तु कहीं विलीन हो गए थे। जल के बहाव का दबाव बहुत क्षीण हो गया था, जैसे वे पुनः सोये हुए जल के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हों। उन्होंने दृष्टि को सामने फेंका-सामने कुछ दूरी पर अनेक वृक्षों के झुंड-के-झुंड दिखाई पड़ रहे थे, जैसे कोई वन-श्रेणी खड़ी हो। तो क्या यात्रा सम्पन्न हुई?
|