बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अभियान राम कथा - अभियाननरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान
इसमें कोई माया नहीं हो सकती, कोई षड्यन्त्र नहीं हो सकता...सीता ने सोचा...माया होती तो राम के विरुद्ध और रावण के पक्ष में होती। उन्हें निराश और हताश करने का प्रयत्न किया जाता; किन्तु यह व्यक्ति तो उनका उत्साह बढ़ा रहा है, राम और लक्ष्मण द्वारा सैन्य-संगठन का समाचार दे रहा है और उन्हें धैर्य बनाए रखने को कह रहा है...यह सच ही राम का दूत है...उनके राम ने उन्हें विस्मृत नहीं किया है, न वे निराश और हताश हुए हैं...उन्होंने सीता को खोज निकाला है...जब खोज निकाला है तो आएंगे भी। अवश्य और ससैन्य आएंगे...सीता को भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। अब दुःख की अंधियारी रात कट जाएगी...उनका राम से मिलन होगा, सीता को रोमांच हो आया था, "मेरा धैर्य प्रायः समाप्त हो चला था!" सीता बोलीं, "अब अपने प्रिय का समाचार मिला, तो स्वयं को समझाऊंगी। तुम यहीं थे, तो सुना होगा, हरण के पश्चात् रावण ने मुझे एक वर्ष की अवधि दी है, अपने पति को भूलने के लिए। तब तक मैं सुरक्षित हूं। स्वयं मंदोदरी, रावण का भाई विभीषण और रावण का मंत्री अविन्ध्य मेरी रक्षा के लिए प्रयत्नशील हैं, किन्तु अवधि समाप्त होने पर कोई मेरी रक्षा नहीं कर पाएगा। रावण की इच्छा कभी पूरी नहीं होगी! अतः या तो वह स्वयं मेरी हत्या कर देगा, अथवा मैं स्वयं आत्महत्या कर लूंगी। राम से कहना, इस अवधि के भीतर यदि वे यहां पहुंच जाएंगे, तो उन्हें सीता जीवित मिलेगी।"
"वे पहुंच जाएंगे माता!''
"पूर्णतः आश्वस्त हो?''
"पूर्णतः।"
"रावण की शक्ति देखी है?''
"देखी है माता।"
"वानर लड़ लेंगे?''
"हम लंका को ध्वस्त कर देंगे।"
"पूरा विश्वास है तुम्हें?''
"कुछ ही दिनों की बात है। आप स्वयं देखेंगी।"
सीता थोड़ी देर मौन रहीं, फिर उन्होंने पूछा, "मुखर और जटायु कैसे हैं?''
"दोनों का तभी देहांत हो गया था।"
"सीता का मुख उदास हो गया। वे मौन रह गईं।
"माता!" हनुमान बोले; "यदि आपकी इच्छा हो तो आप मेरे साथ चली चलें। हम बहुत शीघ्र किष्किंधा पहुंच जाएंगे।"
"कैसे आए हो?''
"सागर में तैरकर।"
"नहीं जा सकेंगे। यह व्यावहारिक नहीं है। तुम जाकर राम को ही सेना सहित भेजो...। सहसा सीता का स्वर भीरु हो गया, "अब तुम जाओ हनुमान! थोड़ी देर में उजाला होने वाला है। किसी भी क्षण कोई आ सकता है। तुम पकड़े गए तो...।
क्षण-भर मौन रहा। फिर हनुमान बोले, "माता, आपसे भेंट का कोई प्रमाण-जों आर्य राम को दे सकूं।" सीता कुछ देर तक सोचती रहीं। फिर उन्होंने पोटली में से चूड़ामणि निकालकर हनुमान की ओर बढ़ा दी। हनुमान वृक्ष से नीचे उतर आए। उन्होंने चूड़ामणि ले ली।
"राम को कहना, शीघ्र आएं। विलंब घातक हो सकता है।"
"आप निश्चिंत रहें माता! मेरे पहुंचते ही सेना का प्रयाण होगा।"
"लंका की रक्षा-व्यवस्था देखी है?''
"देख ली है।" हनुमान सस्मित बोले, "वानरों का बल, राम तथा सौमित्र के शस्त्र और उनका नेतृत्व, राक्षसों का काल बनकर आएगा।"
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