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पैसा परमेश्वर

विमल मित्र

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :115
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5843
आईएसबीएन :81-7145-239-6

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प्रस्तुत है उपन्यास........

Paisa Parmeshwar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

उपन्यास शुरू करने के भी कई अलग-अलग तरीके होते हैं। कोई किसी घटना से शुरू करता है, कोई वर्णन से। बंकिमचन्द्र ने ‘राजसिंह’ उपन्यास की शुरूआत एक तस्वीर वाली घटना से की थी। रियासत रूपनगर के राजमहल के अन्त:पुर में एक बूढ़ी औरत तस्वीरें बेचने आती है। उसी घटना से उपन्यास का सूत्रपात होता है। उसके बाद साजिशों का तानाबाना जटिल होते-होते जब चरम पर जा पहुंचता है और जब सारा रहस्य खुलता है, हम लोग फौरन एक नये जाल में फंस जाते हैं। उसके बाद फिर वही दम-फूली यात्रा !

बंकिमचन्द्र के बाद आये शरतचन्द्र। वे उपन्यास की शुरूआत एकदम अचानक यानी कोई झटका देते हुए करते है। ‘पल्ली समाज’ की पहली ही लाइन में उन्होंने बेणी घोषाल को एकदम से मुखज्जी-बाड़ी के आंगन में ला खड़ा किया। बेणी घोषाल अपने सामने किसी प्रौढ़ महिला को देखकर, उसी से सवाल करता है- ‘अरे मौसी, रमा कहा है, जी ?’
विदेशी लेखों के शुरूआत का तरीका बयान नहीं करूंगा, वर्ना इस कहानी की शुरूआत की नौबत ही नहीं आयेगी।
इंसान की नजरों के सामने ही हर रोज हर पल कोई-न-कोई उपन्यास शुरू हो जाता है, अगले ही पल वहीं खत्म हो जाता है। लाखों-करोड़ों कहानी-उपन्यास आंखों के आगे जन्म लेते हैं, जाने कब वे आंखों की ओट चले जाते हैं, हम देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। बहुत-से तो देख ही नहीं पाते।

खैर, इस उपन्यास का आरम्भ भारत के प्रजातंत्र दिवस यानी 26 जनवरी से कुछ दिनों पहले हुआ। 26 जनवरी को अखबारों के पहले पन्नों पर तीन खबरें एक साथ प्रकाशित हुई। पहली खबर-स्यालदह के पास एक होटल में आत-ताथियों द्वारा एक युवती की हत्या। दूसरी खबर थी-स्यालदह की अदालत में चोरी के जुर्म में एक बालक को छ: महीने की कैद; तीसरी खबर थी-प्रजातंत्र दिवस के अवसर पर उपाधि वितरण !

लेकिन ये सब बातें बाद में ! पहले एक अदद मकान के अंदर चल रहे डिनरपार्टी के हवाले से अपनी बात शुरू करूं !
पार्टी शाम को शुरू हुई थी। मिसेज ल़ाहिड़ी के यहां पार्टियां आमतौर पर शाम को ही शुरू होती हैं। वह पार्टी खत्म कब होगी, इसका कोई ठीक-ठिकाना नहीं। यह भी निश्चित नहीं कि कब कहां क्या घट रहा है। यह भी तय नहीं कि मिस्टर लाहिड़ी के मकान के इस हॉलनुमा कमरे के बाहर, धरती सूरज के गिर्द कितना फासला तय कर चुकी। मिसेज लाहिड़ी के यहाँ पार्टी में, बाहरी दुनिया की खबर रखना भी शायद गुनाह नहीं करते। वहां जाकर आप कैलकटा टर्फ क्लब के नये-नये घोड़ों के बारे में बातचीत कीजिए, नयी-नयी किस्म की स्मगल्ड ह्विस्की और जिन अड्डों पर वे सुलभ हैं, उनकी खोज-खबर दीजिये !

और बातचीत ?
वैसे इस दुनिया में बातचीत के लिए भला विषयवस्तु का अबाव है ? बेरुत पहुंचकर किस नाइट-क्लब में, किस स्टाइल का ‘बेली डांस’ देखा, इस बारे में शौक से व्याख्यान दीजिए ! पैरिस शहर के किनारे किसी कस्बें में किसी जवान लड़की से अचानक परिचय हो गया, इस बारे में आप बढ़ा-चढ़ाकर गप्प ठोंकिये। या फिर न्यूयार्क के हिल्टन की चोटी पर किस रेस्तरां में बैठकर आपने ढाका की चिंगड़ी मछली खायी इस बारे में डींग हाकिये ! ये सब किस्से वे लोग काफी दिलचस्पी से सुनेंगे। ऐसे चटपटे किस्सागो को मिसेज लाहिड़ी की पार्टी में दनादन निमंत्रण मिलेंगे।
इसके बजाय अगर आप अपने ब्लड-शुगर की शिकायत करें, देश के दुर्भिक्ष का रोना रोयें, तो आपकी छुट्टी ! ऐसी चर्चा भूल से भी न छेड़े। इस मामले में खुद मिस्टर लाहिड़ी ही खास दिलचस्प और लोकप्रिय किस्सागो है !
उस दिन भी उन्होंने ही अचानक कोई कहानी छेड़ दी। मिस्टर लाहिड़ी जब कोई किस्सा शुरू करते हैं तो उनकी जलती हुई चुरुट से हल्का-हल्का धुआं निकलता रहता है।

मिस्टर बनर्जी का धीरज टूट गया। उन्होंने बेसब्र लहजे में पूछा, ‘उसके बाद ? उसके बाद क्या हुआ, मिस्टर लाहिड़ी ?’
मिसेज सान्याल एक कोने में चुपचाप बैठी थीं। अचानक मिसेज़ लाहिड़ी की नज़र पड़ गयी। चूकि वे पक्की होस्टेस थी, उनका कोई मेहमान पार्टी में रहकर कहीं कोने में मुंह फुलाये बैठा रहे, यह नामुमकिन है।
‘क्या हुआ, मिसेज सन्याल ? आपने तो कुछ लिया ही नहीं ?’
मिसेज सन्याल के होठों पर मीठी-सी हंसी खेल गयी ! ‘नहीं ! ले तो रही हूं। ’
मिसेज लाहिड़ी ने कहा, ‘नहीं, मैं जाने कब से देख रही हूं, आपने कुछ भी मुंह में नहीं डाला। मैंने खुद सामने खड़े होकर शीक-कवाब बनवाया है और आपने मुंह तक नहीं लगाया.....’

उनसे बातें करते हुए अचानक उनकी निगाह उत्तरी कोने पर जा पड़ी। वहां मिस्टर सेनगुप्ता के हाथ का गिलास बिलकुल खाली हो चुका था। मिसेज लाहिड़ी अपनी शिफॉन की साड़ी का पल्ला उड़ाती हुई फुर्र से उनके पास पहुंच गयीं।
‘अरें ?......हुकुमअली....इधर ड्रिंक्स दो।’

हुकुमअली दौड़ता-हांफता, हाथों में ह्विस्की की ट्रे संभाले हाजिर हुआ !
मिसेज लाहिड़ी ने डांट लगायी, ‘जरा आँखें खोलकर सब तरफ देखा भी करो-’
हुकुमअली शर्म से अधमरा हो गया। ऐसी गफलत के बावजूद मालिक से माफी मिलने पर जैसे वह धन्य-धन्य हो गया वर्ना नौकरी छिन जाने पर भी उसकी जिंदगी और मौत निर्भर करती है !
मिस्टर सेनगुप्ता की आंखों में परम तृप्ति की हंसी झलक उठी। उन्होंने हाथ में गिलास थामे हुए मिसेज लाहिड़ी की तरफ देखा और बेहद कृतज्ञ आवाज़ में कहा- ‘थैंक्स !’

लेकिन इस किस्म की भूल उनकी पार्टी में शायद ही कभी होती हो, क्योंकि बैरे-खानसामे अगर काफी अनुभवी न हों, तो इस मकान में उनकी नौकरी नामुमकिन है !
‘उसके बाद ? उसके बाद क्या हुआ ?’
कलकत्ते के इस अंचल में, मिसेज लाहिड़ी के आलीशान मकान के इस विशाल हॉल-कमरे में आकर, यह बिलकुल नहीं लगता कि हम कलकत्ते शहर में हैं। इस कमरे में आकर कलकत्ता शहर गायब हो जाता है और उसकी जगह न्यूयार्क का सजासंवरा हिल्टन होटल उभर आता है। ह्विस्की और सोड़ा से पार्टी शुरू होती है। हुकुमअली और उसके शागिर्द सिगरेट की ट्रे लिए इधर-उधर घूमते नजर आते है। किसी के हाथ का गिलास कभी खाली न रहे। रात जवान होने के साथ-साथ पार्टी की भीड़ बढ़ने लगती। मिसेज लाहिड़ी की चौकस निगाहों से बचकर पल भर उदास होने की भी मुहलत नहीं ! ज्यादातर लोग जाड़ों में आते। कभी किसी खास दिन, किसी खास मौके पर, कोई खास वी.आई.पी. आते। पार्टी में लोग उन्हें ही घेरे रहते।

वैसे अगर कोई पार्टी के आयोजन का कारण पूछ बैठे, तो उसका भी जवाब हरदम तैयार रहता है।
मिसेज लाहिड़ी कहती, ‘बस यूं ही, जरा आप लोगों को देखने का मन हो आया, इसलिए........’
यानी कभी जन्मदिन, कभी किसी खास मेहमान का आविर्भाव, कभी क्रिसमस, कभी दुर्गापूजा, और कभी बस यूं ही भेंट-मुलाकात के लिए पार्टी दी जाती। वैसे भी पार्टी देने के लिए कभी बहाने का अभाव होता है ? और कुछ नहीं, तो मिस्टर लाहिड़ी को अपने काम से कभी-कभार हिन्दुस्तान के बाहर विदेश जाना पड़ता है। बस, वापस आते ही पार्टी। पार्क-सरकस का यह मकान अपनी पार्टियों के लिए आभिजात्य समाज में खासा मशहूर हो उठा है। जो लोग यहां की पार्टियों में शरीक होते हैं वे अपने को धन्य मानते हैं। जो लोग ये पार्टियां देते हैं, वे भी कृतज्ञता से गद्गद् रहते। पार्टी के आयोजन के बारे में सप्ताह भर पहले ही घर-घर फोन चले जाते। मिसेज लाहिड़ी ने मेहमानों की लंबी फेहरिश्त तैयार कर रखी है। इसी फेहरिश्त से, हर बार पंद्रह-सोलह नाम चुन लिए जाते। अगली पार्टी के लिए अगले नाम ! वैसे घूम-फिरकर हर जुबान पर वही-वही बातें ! ह्विस्की का नशा जब गहरा होता, तो डिनर ! डिनर के वक़्त मिसेज लाहिड़ी की ड्यूटी बढ़ जाती। जो लोग सिर्फ अभी तक रंगीन पानी से अपना लिवर भिगोते रहे, उनके लिए प्रोटीन का भी भरपूर इंतजाम होना चाहिए !

‘अरे, यह क्या मिसेज जोर्यादार, आपने तो कुछ लिया नहीं ! लीजिये ! चलिये उठाइये ये चिकन-रोल !-’
मिस्टर लाहिड़ी खाने के वक्त भी कहानियां सुनाने में मशगूल रहते।
‘उसके बाद ?........उसके बाद क्या हुआ, मिस्टर लाहिड़ी ?’
ये सब हमेशा का रिवाज है ! जैसे मिस्टर लाहिड़ी की कहानियां कभी खत्म नहीं होतीं, उसी तरह उनकी कहानियों के लिए श्रोताओं की भी कभी कमी नहीं हुई। यहां चुन-चुनकर ऐसे लोगों को ही आमंत्रित किया जाता है, जिनके आने से मिस्टर लाहिड़ी का वक्त मजे-मजे से कट जाये। जिस वक्त एक-एक करके सभी गाड़ियां घर के सामने वाले लॉन से निकलकर, गेट के पार बाहर सड़क पर पड़ती हैं। जब पूरब दिशा का आकाश, धीरे-धीरे धुंधलाने लगता, यह मकान बिलकुल निर्जन हो जाता यानी उस घर के लिए यह आधी रात का वक्त बन जाता।

मिस्टर और मिसेज लाहिड़ी का पूर्व-परिचय शायद कोई नहीं जानता। जाने कहां, किस खाई में इनकी जड़ें जमी हैं, यह जानने की किसी को चाह भी नहीं है। आखिर वे लोग ठहरे शहरी ! जानने की उत्सुकता भी नितांत अशोभनीय लगती है। तुम्हारे पास दौलत है, अटूट दौलत-बस, उसका अंक जानकर ही हम खुश हो जाते हैं ! तुम मुझसे रुपये कभी मत मांगना, मैं भी तुम्हारे आगे कभी हाथ नहीं फैलाऊंगा। जिन्दगी की राह में यहां-वहां तुमसे भेंट-मुलाकात होती रहे, बस ! भविष्य में जाने कौन कहां बे-नामो-निशान हो जाये, कोई ठीक नहीं ! बच रहे वर्तमान के कुछ एक पल ! आओ, उन्हें ह्विस्की के दौर और नशे में उड़ा डालें ! गुड् लक।
मिस्टर बैनर्जी उनकी बातें काफी दिलचस्पी से सुन रहे थे। उन्होंने पूछा, ‘उसके बाद ? उसके बाद क्या हुआ मिस्टर लाहिड़ी ?’

मिस्टर लाहिड़ी ने कहा, ‘उसके बाद, मैं मैडम के पास पहुंचा। मैंने मैडम से पूछा-आपका चार्ज क्या है ? मैडम ने पूछा-आप यहां कितने घंटे रहेंगे ?’
लेकिन उनकी कहानी अधूरी रह गयी। बात खत्म होने से पहले ही मकान के बाहरी हिस्से में अजब कोहराम मच गया।
वहां इतना कोहराम क्यों मचा हुआ है ? कौन है ? वह क्या कर रहा है ? क्या हुआ ? कौन है ?
‘हुकुमअली ! एइ, हुकुमअली-
समूची पार्टी की गर्म आबोहवा में मानो किसी ने बाल्टी भर ठंडा पानी उड़ेल दिया हो। ऐसा बेशकीमती नशा, पलक झपकते ही, मानो पानी-पानी हो गया।

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