विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
मानस-सरोवर
हम लोग सरोवर की तली को नहीं देख सकते, क्योंकि उसकी सतह लहरों से व्याप्त रहती है। उस तली की झलक मिलनी तभी सम्भव है, जब ये सारी लहरें शान्त हो जायँ और पानी स्थिर हो जाय। यदि पानी गंदला हो, या सारे समय उसमें हलचल होती रहे, तो वह तली कभी दिखायी न देगी। पर यदि पानी निर्मल हो और उसमें एक भी लहर न रहे, तब हम उस तली को अवश्य देख सकेंगे। सरोवर की तली हमारा अपना वास्तविक स्वरूप है, सरोवर चित्त है तथा लहरें वृत्तियाँ हैं।
फिर यह भी देखा जाता है कि यह मन तीन प्रकार की अवस्थाओं में रहता है।
एक है तम की अर्थात् अन्धकारमय अवस्था, जैसा कि हम पशुओं और अत्यन्त मुर्खो में पाते हैं। ऐसे मन की प्रवृत्ति केवल औरों को अनिष्ट पहुँचाने में ही होती है, मन की इस अवस्था में और दूसरा कोई विचार ही नहीं सूझता।
दूसरा है - रज अर्थात् मन की क्रियाशील अवस्था, जिसमें केवल प्रभुत्व और भोग की इच्छा रहती है। उस समय यही भाव रहता है कि 'मैं शक्तिमान होऊँगा और दूसरों पर प्रभुत्व करूँगा।'
तीसरा है - सत्त्व अर्थात् मन की गम्भीर और शान्त अवस्था, जिसमें समस्त तरंगें शान्त हो जाती है और मानस-सरोवर का जल निर्मल हो जाता है। (१.११७)
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