विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
मन और उसका निग्रह
ध्यान ही इन बड़ी तरंगों की उत्पत्ति को रोकने का एक महान उपाय है। ध्यान के द्वारा मन की ये वृत्तिरूप लहरें दब जाती हैं। यदि तुम दिन पर दिन, मास पर मास, वर्ष पर वर्ष, इस ध्यान का अभ्यास करो जब तक वह तुम्हारे स्वभाव में न भिद जाय, जब तक तुम्हारी इच्छा न करने पर भी वह ध्यान आपसे आप आने लगे तो क्रोध, घृणा आदि वृत्तियाँ संयत हो जायेंगी। (१.१५८-५९)
प्रसन्न रहो
तुम धर्म-पथ में अपने अग्रसर होने का प्रथम लक्षण यह देखोगे कि तुम दिन पर दिन बड़े प्रफुल्ल होते जा रहे हो। यदि कोई व्यक्ति विषादयुक्त दिखे, तो वह अजीर्ण का फल भले ही हो, पर धर्म का लक्षण नहीं हो सकता।
योगी के लिए सभी सुखमय प्रतीत होते हैं; वे जिस किसी मनुष्य को देखते हैं, उसीसे उनको आनन्द होता है। यही धार्मिक मनुष्य का चिह्न हैं। उतरा हुआ चेहरा लेकर क्या होगा? कैसा भयानक दृश्य है वह ! यदि तुम्हारा चेहरा उदास हो तो उस दिन बाहर मत जाओ, स्वयं को कमरे बन्द रखो। संसार में इस बीमारी को संक्रामित करने का तुम्हे क्या अधिकार है? (१.१८०)
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