विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
योगियों के लक्षण
'जो किसी से घृणा नहीं करते, जो सबके मित्र हैं, सबके प्रति करुणावान् हैं; जो ममत्वरहित, अहंकाररहित, सुख-दुख में समभावयुक्त, क्षमावान् हैं तथा जो निरन्तर सन्तुष्ट, योगी (अर्थात् समाहितचित्त), संयतात्मा, दृढ़निश्चयी और मुझमें अर्पण किये हुए मन-बुद्धिवाला है, वह मेरा भक्त मुझे प्रिय है।
जिससे कोई उद्विग्न नहीं होता, जो स्वयं भी किसी से उद्वेग को प्राप्त नहीं होता, तथा जो हर्ष, असहिष्णुता, भय तथा उद्वेग से मुक्त है, वही मेरा प्रिय भक्त है।
जो किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं करता, जो (अन्तर्बाह्य) शुद्ध, कुशल है, जो अच्छे या बुरे परिणाम की चिन्ता से रहित, जो कभी खेद को प्राप्त नहीं होता, जिसने अपने लिये सभी प्रयत्नों (काम्य कर्मों) का त्याग कर दिया है, जो निन्दा और स्तुति में समभावापन्न है, मौनी हैं, जो कुछ पाता है, उसीमें सन्तुष्ट रहता है, जिसका कोई निर्दिष्ट घर-बार नहीं, सारा जगत् ही जिसका घर है, जिसकी बुद्धि स्थिर है, ऐसा व्यक्ति ही मेरा प्रिय भक्त है।
ऐसे व्यक्ति ही योगी हो सकते हैं। (१.१०४- १०५)
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