विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
मुक्ता-शुक्ति जैसे बनो
भारतवर्ष में एक सुन्दर किवंदन्ती प्रचलित है कि आकाश में स्वाति नक्षत्र के तुंगस्थ रहते यदि वर्षा हो और उसकी एक बूँद किसी सीपी में चली जाय, तो उसका मोती बन जाता है।
सीपियों को यह मालूम है। अतएव जब वह नक्षत्र उदित होता है, तो सीपियाँ पानी की ऊपरी सतह पर आ जाती हैं, और उस समय की एक अनमोल बूँद की प्रतीक्षा करती रहती हैं। ज्यों ही एक बूँद उनमें पड़ती है, त्यों ही उस जलकण को लेकर, बाह्य आवरण का मुँह बन्द करके वे समुद्र के अथाह गर्भ में चली जाती हैं और वहाँ बड़े धैर्य के साथ उस जलकण का मोती तैयार करने के प्रयत्न में लग जाती हैं।
हमें भी उन्हीं सीपियों की तरह होना होगा। पहले सुनना होगा, फिर समझना होगा, अन्त में बाहरी संसार से दृष्टि बिल्कुल हटाकर, सब प्रकार की विक्षेपकारी बातों से दूर रहकर हमें अन्तर्निहित सत्य-तत्त्व के विकास के लिए प्रयत्न करना होगा। (१.८९)
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