विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
सम्पादक की भूमिका
जब एक मछली मछुआरे के जाल में फँस जाती है और उसे किनारे की ओर ले जाया जाता है तो वह सूखी धरती पर छटपटाती और तड़फड़ाती है; अपने वास्तविक निवास स्थान पानी में लौटने जाने के लिये हताशापूर्वक संघर्ष करती है। इसी प्रकार मनुष्य का वास्तविक धाम तो भगवान है, जब तक वह अपने दैवी स्वरूप को भूला रहता है तब तक खित्र और व्याकुल रहता है। ध्यान वह सेतु है जो मनुष्य को भगवान् से जोड़ता है। ध्यान की प्रणालियाँ अनेक हैं परन्तु उनका मुख्य लक्ष्य उस मायाजाल से मुक्त होने का मार्ग जुटाना है जो सारे दुःखों का मूल है तथा इस प्रकार मनुष्य के मन में शान्ति तथा आनन्द लाना है।
अपने आसपास के संसार की दुश्चिन्ताओं तथा तनावों, इसके प्रलोभनों तथा कुण्ठाओं का प्रहार खाते हुए तथा साथ ही साथ अपने भीतर केवल एक महान रिक्तता को पाकर आज का मनुष्य महासंकट में पड़ा है। वह यह निर्धारित करने में असमर्थ है कि जीवन के स्थाई मूल्य क्या हैं। वास्तव में वह सम्भवतः अनजाने में - स्वतन्त्रता, आनन्द, मानसिक सन्तुलन तथा आन्तरिक शान्ति की ही खोज कर रहा है। वह इसे कैसे प्राप्त कर सकता है? इसका उत्तर है - ध्यान।
ध्यान की साधना के लिये सुनिश्चित निर्देश किसी भी पुस्तक से ग्रहण नहीं किये जा सकते; बल्कि उन्हें शिष्य की चित्तप्रकृति तथा आध्यात्मिक प्रगति के अनुरूप किसी योग्य गुरु से ही सीखना चाहिये। फिर भी किसी महान् आत्मा के शब्दों का प्रभाव स्थाई होता है, तथा स्वामी विवेकानन्द के इन शब्दों द्वारा कोई भी व्यक्ति न केवल ध्यान के सामान्य सिद्धान्तों से परिचित हो जाता है अब अपितु स्वयं में निहित दिव्यता को खोजने के लिये प्रेरणा तथा शक्ति भी जुटाता है। स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानों, लेखों तथा वार्तालापों से इन सञ्चयनों को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने निरे विद्वान् वे रूप में नहीं अपितु प्रामाणिक अधिकार से सिखाया है। क्योंकि उनके द्वारा उपदेशित आध्यात्मिक अनुभवों की गहराइयों में वे स्वयं गहन रूप से निमग्न हुए थे।
यह पुस्तक, 'योग के अनुसार ध्यान' तथा 'वेदान्त के अनुसार ध्यान', नामक दो भागों में विभक्त की गयी है। पहला भाग ध्यान के प्रति व्यावहारिक तथा रहस्यवादी मार्ग को प्रतिबिम्बित करता है तथा दूसरा भाग अधिक दार्शनिक तथा इन्द्रियातीत उपगमन वाला है। फिर भी दोनों मार्ग ज्ञान प्रबोधन की प्राप्ति के सर्वोपरि साधन के रूप में ध्यान पर ही जोर देते हैं तथा दोनों ही साधक को एक ही लक्ष्य की ओर निर्दिष्ट करते हैं।
हमने प्रत्येक चयन को शीर्षक दिया है, .... स्पष्टता तथा पठन की सुगमता के लिये भी हमने यत्र तत्र एक या अधिक वाक्यों या प्रस्तावनात्मक वाक्यांशों की काँटछाँट की है तथा इन विलोपनों तथा मूलपाठ से किये गये परिवर्तनों को सूचित किये बिना चिह्नाङ्कनों को नया रूप दिया है। तथापि प्रत्येक चयन के लिये विवेकानन्द साहित्य के खण्ड तथा पृष्ठ संख्या का संदर्भ दिया गया है ... तथा पुस्तक के अन्त में प्रत्येक खण्ड तथा उसके संस्करण का संदर्भ पाया जा सकता है। इन उद्धरणों का चयन करने से हमने न केवल ध्यान के लिए स्वामी विवेकानन्द के अनुदेशनों अपितु उनके अनुभवों के विवरणों सहित उनके अनेक अनुलिखित वार्तालापों में उन द्वारा बताई गयी प्राचीन कहानियों का भी समावेश किया है ताकि उनके उपदेशों की समृद्ध विविधता को प्रतिबिम्बित करने का प्रयत्न किया जा सके।
इन उद्धरणों को The Complete Works of Swami Vivekananda कम्पलीट वर्क्स आफ स्वामी विवेकानन्द में से पुनः प्रस्तुत करने की अनुमति देने के लिये हम अद्वैत आश्रम, मायावती के आभारी है। अन्त में प्राक्कथन लिखने के लिये हम क्रिस्टोफर ईशरवुड के प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करते हैं।
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