विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
प्रशान्ति के राज्य में
आध्यात्मिक जीवन का सबसे बड़ा सहायक ध्यान है। ध्यान के द्वारा हम अपनी सभी भौतिक भावनाओं से अपने आपको स्वतंत्र कर लेते हैं और अपने ईश्वरीय स्वरूप का अनुभव करने लगते हैं।
ध्यान करते समय हमें कोई बाहरी साधनों पर अवलम्बित नहीं रहना पड़ता। गहरे अँधेरे स्थान को भी आत्मा की ज्योति दिव्य प्रकाश से भर देती है, बुरी से बुरी वस्तु में भी वह अपना सौरभ उत्पन्न कर सकती है, वह अत्यन्त दुष्ट मनुष्य को भी दिव्य बना देती है - और सम्पूर्ण स्वार्थी भावनाएँ, सम्पूर्ण शत्रुभाव नष्ट हो जाते हैं।
शरीर का जितना कम ख्याल हो, उतना ही अच्छा, क्योंकि वह शरीर ही है, जो हमें नीचे गिराता है। इस शरीर से आसक्ति और उससे तादात्म्य ही हमारे दुःखों का कारण हैं।
'मैं आत्मा हूँ, मैं शरीर नहीं यह विश्व और उसके सम्पूर्ण संबंध, उसकी भलाई और उसकी बुराई यह सब एक चित्रावली - चित्रपट पर खिची हुई दृश्यशृंखला है और मैं उसका साक्षी हूँ' - यह निदिध्यासन ही धर्मजीवन का रहस्य है। (३.१२३)
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