विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
ध्यान के तीन चरण
ध्यान के तीन चरण होते हैं।
प्रथम वह है, जिसे धारणा कहते हैं, किसी वस्तु पर चित्त को ठहराना। मैं इस गिलास पर अपना चित्त एकाग्र करता हूँ और गिलास के अतिरिक्त अन्य प्रत्येक वस्तु को उससे बाहर रखता हूँ।
लेकिन मन चंचल है।... जब वह दृढ़ हो जाता है और उतना अधिक चंचल नहीं रहता, तब ध्यान कहलाता है। और जब मेरे तथा गिलास के बीच का भेद मिट जाता है, तब उससे भी उच्चतर अवस्था होती है - समाधि या अन्तर्लयन। मन और गिलास में अभेद हो जाता है। मुझे कोई भेद नहीं दिखायी पड़ता। सभी इन्द्रियाँ रुक जाती हैं और अन्य इन्द्रियों के अन्य प्रवाह-मार्गों में सक्रिय शक्तियाँ मन में केन्द्रीभूत हो जाती हैं। तब यह गिलास पूर्णतः मन की शक्ति के अधीन हो जाता है। इसे ही प्राप्त करना है। यह एक जबरदस्त खेल है, जिसे योगी खेलते हैं। (४.१३२)
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