विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
तनावमुक्त विश्राम
ध्यान का अर्थ यह है कि मन को मोड़कर मन में ही लगा दिया जाय। यदि मन सारी विचार-तरंगें रोक दे, तो संसार रुक जायगा। तुम्हारी चेतना विस्तृत होती है। जितनी बार तुम ध्यान करोगे, उतना ही अधिक तुम्हारा विकास होगा। ... थोड़ा और अध्यवसाय करो, निरन्तर बढ़ाते जाओ, और ध्यान जम जायगा। तुमको शरीर या अन्य किसी वस्तु का भान न होगा। जब तुम ध्यान-काल के बाद उससे उठोगे, तब तुमको प्रतीत होगा कि जीवन- काल की सर्वाधिक सुन्दर विश्रान्ति मिली है। यदि तुम कभी भी अपनी (समग्र शारीरिक और मानसिक) प्रणाली को आरम दे पाओ, तो उसका यही एकमात्र तरीका है। गहरी से गहरी निद्रा से भी उतना विश्राम नहीं मिलेगा, जितना उससे मिलेगा। मन प्रगाढ़तम निद्रा में भी उछलता कूदता रहता है। (ध्यान के) उन कुछ क्षणों में तुम्हारा मस्तिष्क लगभग रुक जाता है। थोड़ी सी जीवनी-शक्ति बनी रहती है। तुम शरीर को विस्मृत कर देते हो। तुम बोटी बोटी काट डाले जाओ, फिर भी तुमको लेशमात्र अनुभव न हो। उसमें तुमको इतना आनन्द मिलेगा। तुम इतने हल्के हो जाओगे। यह पूर्ण विश्रान्ति हमें ध्यान में मिलेगी। (४.३९)
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