विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
क्रिया से प्रतिक्रिया होती है
प्रकृति की प्रत्येक इन्द्रियोगोचर क्रिया में तुम्हारा योगदान कम से कम आधा होता है और आधा प्रकृति का होता है। यदि तुम्हारा आधा निकाल लिया जाय, तो वस्तु का अंत अवश्य हो जाय।
प्रत्येक क्रिया की समान प्रतिक्रिया होती है। ... यदि कोई आदमी मुझ पर प्रहार करता है और मुझे चोट पहुँचाता है, तो वह उस आदमी की क्रिया और मेरे शरीर की प्रतिक्रिया है। (४.१३३)
हम एक और उदाहरण लें। तुम किसी झील के तरंगरहित तल पर पत्थर गिरा रहे हो। प्रत्येक पत्थर के गिराने के बाद एक प्रतिक्रिया होती है। झील की छोटी तरंगों से पत्थर ढक जाता है। इसी प्रकार बाह्य वस्तुएँ इस मनोहद में गिरनेवाले पत्थरों के समान हैं। अतः हम वस्तुतः बाह्य वस्तु नहीं देखते, ... हम केवल तरंग देखते हैं। (४.१३२)
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