विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
ध्यान एक विज्ञान है
जो कुछ सत् है, वह एक है। अनेक नहीं हो सकते। विज्ञान और ज्ञान का यही अभिप्राय है। अज्ञान अनेकता देखता है। ज्ञान एक का साक्षात्कार करता है। अनेक को एक में रूपान्तरित करना विज्ञान है। समस्त जगत् को एक सिद्ध किया गया है। उस विज्ञान को वेदान्त का विज्ञान कहा जाता है। समस्त जगत् एक है।
इस समय हमारे सामने ये सब विविधताएँ हैं और उन्हें हम देखते हैं - उन्हें हम पंचभूत कहते हैं - पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। (४.१३६)
ध्यान वह अभ्यास है जिनमें सब कुछ उस परम सत्य - आत्मा में घुला दिया जाता है। पृथिवी जल में रूपान्तरित होती है, जल वायु में, वायु आकाश में, तब (आकाश) मन मे और फिर वह मन भी विलीन हो जाता है। सब आत्मा ही है 1
ध्यान, तुम जानते हो, कल्पना की प्रक्रिया से आता है, तुम इन तत्त्वों के शोधन की इन तमाम प्रक्रियाओं से होकर बढ़ो - एक को दूसरे में रूपान्तरित करते जाओ, फिर उसको अपने से ऊँचे में, फिर उसको मन में, फिर उसको आत्मा में और तब तुम आत्मा हो। (४.१३७)
यह मृत्तिका का विशाल पिण्ड है। उस मृत्तिका में से मैंने एक छोटा चूहा बनाया और तुमने छोटा हाथी। दोनों ही मृत्तिका हैं। दोनों को विघटित कर दो। दोनों अनिवार्यतः एक हैं। (४.१३८)
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