विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
अलौकिक शक्तियाँ
स्वामीजी बोले, “सिद्धाई या विभूति मन के थोड़े ही संयम से प्राप्त हो जाती है।" शिष्य को लक्ष्य करके उन्होंने पूछा, “क्या तू औरों के मन की बात जानने की विद्या सीखेगा? चार पाँच दिन में ही तुझे यह सिखला सकता हूँ।" ६९)
शिष्य - इससे क्या उपकार होगा?
स्वामीजी - क्यों? औरों के मन की बात जान सकेगा।
शिष्य - क्या इससे ब्रह्मविद्या लाभ करने में कोई सहायता मिलेगी?
स्वामीजी - कुछ भी नहीं।
शिष्य - तब वह विद्या सीखने से मेरा कोई प्रयोजन नहीं। (६.६८-६९)
स्वामीजी - श्रीरामकृष्ण सिद्धाइयों की बड़ी निन्दा किया करते थे। वे कहा करते थे कि इन शक्तियों की अभिव्यक्ति की ओर मन लगाये रखने से कोई परमार्थ को नहीं पहुँचता; परन्तु मनुष्य का मन ऐसा दुर्बल है कि गृहस्थों का तो कहना ही क्या, साधुओं में भी चौदह आने लोग सिद्धाई के उपासक होते हैं। पाश्चात्य देशों में लोग इन जादुओं को देखकर निर्वाक् हो जाते हैं। सिद्धाई लाभ करना बुरा है और वह धर्म-पथ में विघ्न डालता है। श्रीरामकृष्ण के कृपापूर्वक समझाने के कारण ही मैं यह बात समझ सका हूँ। क्या तुमने देखा नहीं कि श्री गुरुदेव की सन्तानों में से कोई उधर ध्यान नहीं देता? (६.७०)
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