विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
इस समय और अभी
स्वर्ग में जाकर एक वीणा पाऊँगा और उसे बजाकर यथासमय विश्रामसुख का अनुभव करूँगा - इस बात की अपेक्षा मत करो। इसी जगह एक वीणा लेकर क्यों न बजाना आरम्भ कर दो? स्वर्ग के लिए राह देखने की क्या आवश्यकता है? इस लोक को ही स्वर्ग बना लो। (७.१०९)
यदि हम भी ईश्वर को नहीं देख सकते तो कैसे जान सकेंगे कि मूसा ने ईश्वर का दर्शन किया था? यदि ईश्वर कभी किसीके समीप आये हैं, तो हमारे समीप भी आयेंगे। मैं एकदम उनके पास जाऊँगा, वे मुझसे बातचीत करेंगे। विश्वास को आधाररूप में मैं ग्रहण नहीं कर सकता - यह नास्तिकता और घोर ईश्वरनिन्दा मात्र है यदि ईश्वर ने दो हजार वर्ष पहले अरब की मरुभूमि में किसी व्यक्ति के साथ वार्तालाप किया हैं, तो वे आज मेरे साथ भी वार्तालाप कर सकते हैं। यदि वे नहीं कर सकते तो हम क्यों न कहें कि वे मर गये हैं? जैसे भी हो ईश्वर के निकट आओ आना ही चाहिए। किन्तु आते समय किसीको ढकेलना मत। (७.११४)
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